________________
सिंहावलोकन
५४६
. मध्यकालीन भारत की भौगोलिक चेतना पूर्णतया राजनैतिक परिस्थितियों से प्रभावित रहे बिना न रह सकी। जैन महाकाव्यों में वरिणत राष्ट्र, विषय, देश, आदि जिन प्रशासकीय संज्ञानों का व्यवहार हुआ है राष्ट्रकूट, चालुक्य, पल्लव आदि राजवंशों की शासनप्रणालियों में भी इनकी स्थिति रही थी। बौद्धकालीन 'जनपदों' तथा 'महाजनपदों' की सीमाएं प्रालोच्य युग में अत्यन्त संकुचित हो चुकी थीं। उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम, सभी क्षेत्रों के पर्वतों तथा नदियों का जैन संस्कृत महाकाव्यों में उल्लेख पाया है। भारतवर्ष के विभिन्न देशों, प्रदेशों, जनपदों तथा अन्य ऐतिहासिक स्थानों से सम्बद्ध अनेक भौगोलिक वर्णन भी ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं ।
इस प्रकार देश-काल की कुछ स्वाभाविक सीमानों में परिबद्ध रहने के बाद भी जैन संस्कृत महाकाव्यों में प्रतिबिम्बित सामाजिक चेतना समग्र राष्ट्रीय स्तर पर जनमानस की आकांक्षाओं एवं भावनाओं का प्रतिनिधित्व करती है। जैन संस्कृति के पौराणिक इतिवृत्त से अतिरञ्जित रहने के बाद भी जैन महाकवियों ने महाकाव्य साहित्य के राष्ट्रीय गौरव को रेखाङ्कित करते हुए एक तटस्थ एवं जागरूक युगद्रष्टा के रूप में मध्यकालीन भारत के इतिहास मूल्यों में जी रहे विविध वर्गों, समुदायों, मानव व्यवहारों एवं सामाजिक परिस्थितियों का यथावत् रूप प्रस्तुत किया है । मध्यकालीन भारतीय समाजव्यवस्था के विविध पक्षों पर उपयोगी एवं नवीन प्रकाश डालने वाले जैन संस्कृत महाकाव्यों के साक्ष्य निःसन्देह इतिहास लेखन की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण दस्तावेज सिद्ध होते हैं तथा सामाजिक जन-जीवन की अनेक टूटी हुई कड़ियों को भी जोड़ते हैं।