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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
राष्ट्रीयता एवं गुणवत्ता दोनों दृष्टियों से एक गौरवशाली संस्था के रूप में प्राचीन भारतीय विद्याओं के ज्ञानार्जन तथा उनके विकास की गतिविधियों को विशेष प्रोत्साहित कर रही थी।
८. प्राचीन काल से लेकर मध्यकाल तक की नारी की स्थिति का ऐतिहासिक पर्यवेक्षण इस तथ्य की पुष्टि करता है कि बौद्ध कालीन नारी मल्यो में अत्यधिक गिरावट आने के कारण ही स्मृतिकालीन नारीदासता की पृष्ठभूमि तैयार हुई जिसके परिणामस्वरूप नारी को पुरुषाधीन बना दिया गया और उसके कई मौलिक अधिकारों को भी प्रतिबन्धित कर दिया गया। मध्यकालीन नारी इसी स्मृतिकालीन आचार संहिता से प्राबद्ध रही थी किन्तु आलोच्य युग में स्त्रीभोगविलास तथा सामन्तवादी जीवन के मूल्यों से प्रभावित होने के कारण नारी चेतना युग की एक प्रमुख चेतना बनकर उभरी है। नारी सौन्दर्य की देवी के रूप में सामन्ती जीवन पद्धति पर हावी थी। धर्म, दर्शन, अर्थव्यवस्था, राजनीति सभी क्षेत्रों में उसकी इस प्रभुता का सिक्का जमा हुअा था किन्तु किसी सामाजिक चेतना या नारी जागरण के कारण यह परिवर्तन प्रभावित नहीं था प्रपितु नारी की भोग्या शक्ति के विराट रूप ने इस परिवर्तन को जन्म दिया। मध्ययुगीन साहित्यकारों को भी यह श्रेय जाता है कि उन्होंने प्रधान रूप से दो ही युगचेतनामों के प्रतिपादन में विशेष रुचि ली उनमें एक थी युद्ध चेतना तो दूसरी थी नारीचेतना। ये दोनों चेतनाएं एक दूसरे को भी प्रभावित किए हुए थीं। युद्ध चेतना नारी मूल्यों से प्रेरित थी तो नारीचेतना से अनुप्राणित होकर युद्ध लड़े जाते थे । नारी युद्धों का कारण बनी हुई थी तो युद्ध शान्ति के उपाय भी उसी से साधे जा सकते थे।
आलोच्य युग की विवाह संस्था अत्याधुनिक एवं राजनैतिक मूल्यों से विशेष प्रभावित जान पड़ती है। राजपरिवारों के विवाह सम्बन्ध तत्कालीन राजनैतिक परिस्थितियों से प्रभावित थे। सामन्त राजा प्राय: अपने साम्राज्य विस्तार की अपेक्षा से बड़े और शक्तिशाली राजपरिवारों से विवाह सम्बन्ध रखने की लालसा से ग्रस्त थे। विवाह सम्बन्धों के अवसर पर विशाल धन-सम्पत्ति तथा ग्राम-नगरों को दहेज के रूप में दिए जाने के कारण सामन्तवादी अर्थव्यवस्था की जड़ें मजबूत हुई तथा भूमि सम्पत्ति के हस्तान्तरण को विशेष प्रोत्साहन मिला। राजपरिवारों में स्वयंवर विवाह, प्रेम विवाह आदि का प्रचलन बढ़ता जा रहा था जो इस तथ्य का प्रमाण है कि राजकुलों में नारी को अपने मनोवांछित वर के चयन को स्वतंत्रता मिली हुई थी । अनेक जैन महाकाव्यों से कर्नाटक, गुजरात, राजस्थान आदि प्रदेशों की तात्कालिक विवाह विधियों तथा अनेक मनोरंजक रीतिरिवाजों को भी महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।