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________________ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज समान था तथा बामनाथ से श्रीरङ्गम तक फैला हुआ था। विजय नगर की राजघानी भी कर्णाटक कहलाती थी । ' ५२८ १८. विदेह – चन्द्रप्रभचरित में पूर्वविदेह तथा अपरविदेह दो क्षेत्रों का नाम आया है । पूर्वविदेह घातकी खण्ड द्वीप के पूर्वभाग का पूर्वमन्दर क्षेत्र है तो अपरविदेह पुष्करद्वीपवर्ती पूर्वमन्दरगिरि की पश्चिम दिशा का क्षेत्र है । कुशि तथा गण्डक विदेह की पूर्वी एवं पश्चिमी सीमाएं थीं। इसके उत्तरी भाग में हिमालय तथा दक्षिण भाग में गङ्गा नदी पड़ती है । ४ १६. सिन्धु – सिन्धु नदी के तटवर्ती भागों में स्थित था । सिन्धु देश के दक्षिण भाग में 'श्राभीर' तथा उत्तरी भाग में 'मुषिक' रहते थे । २०. गान्धार ® - काबुल नदी तथा सिन्धु नदी का समीपवर्ती स्थान गान्धार कहलाता था, जिसमें पेशावर, रावलपिण्डी प्रादि प्रान्त भी सम्मिलित थे । चन्द्रगुप्त मौर्य तथा प्रशोक के साम्राज्यों में गान्धार भी सम्मिलित था। रावलिन्सन के अनुसार सिन्धु-निवासी गान्धार समुदाय कन्दहर में ५वीं शताब्दी ई० में प्रवासित " २१. श्राभोर - अभीर श्रथवा श्राभीर सिन्धु के पूर्व में स्थित है । अभिलेख ग्रन्थों के साक्ष्यों के आधार पर सिन्धु के पश्चिम में तथा पुराणों के प्राधार पर उत्तर में प्राभीर की स्थिति स्वीकार की गई है । इस प्रदेश की स्थिति दक्षिण-पूर्वी गुजरात के रूप में भी स्वीकार की गई है । ऐतिहासिक दृष्टि से श्राभीर देश में पश्चिमी क्षत्रपों ने राज्य किया था । १० १. Dey, Geog. Dic., p. 94 २. ३. चन्द्र०, १.१२, २.११४ ८. चन्द्र०, १.१२, २.११४, वर्ध०, १७.१ ४. Dey, Geog. Dic., p. 35 ५. वराङ्ग०, १६.३३; चन्द्र०, १६.४५; जयन्त०, ११.६२; कीर्ति०, २.२६ ६. Dey, Geog. Dic., p. 186 ७. द्वया०, १५.२४ Dey, Geog. Dic., pp. 70-71 ९. वराङ्ग०, १६.३२ १०. Bajpai, Geog. Ency, Pt. I, p. 1
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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