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________________ भौगोलिक स्थिति ५२७ गङ्गा के दक्षिण भाग बनारस से मोंघयार तक तथा दक्षिणस्थ सिन्धभूम तक भी हुआ था । हेमचन्द्र के अनुसार मगधदेश जम्बूद्वीप के भरतार्थ क्षेत्र के दक्षिण दिशा की ओर स्थित था । २ 'राजगृह' पत्तन की स्थिति भी मगध में ही थी । १४. विदर्भ ४ – पुराणों के भोज विदर्भवासी कहलाते थे । इसकी प्राचीन सीमा में भोपाल, भिल्सा तथा उत्तरी नर्मदा के क्षेत्र आते हैं । एक अन्य विभाजन के अनुसार बरार, खानदेश तथा मध्य प्रदेश का कुछ भाग विदर्भ की सीमाओं को स्पष्ट करता है तथा इसके प्रमुख नगर कुण्डिननगर, भोजकटकपुर आदि हैं। - १५. कोंकरण ( कुंकरण ) यह प्रदेश परशुराम क्षेत्र के नाम से भी प्रसिद्ध है तथा इसकी राजधानी तान थी । भौगोलिक दृष्टि से पश्चिमी घाट तथा अरब सागर के निकटवर्ती सीमाओं के मध्य में यह देश स्थित था । बाजपेयी महोदय के अनुसार इसकी अपरान्तक, तथा मालाबार तक स्थिति रही थी । ७ १६. आन्ध्र–चन्द्रप्रभ के टीकाकार के अनुसार आन्ध्र देश को तेलुगु देश की संज्ञा दी गई हैं । गोदावरी तथा कृष्णा नदियों के मध्य इसकी स्थिति मानी गई है। तथा इसकी राजधानी अमरावती अथवा धनकटक रही थी । हैदराबाद का दक्षिण भाग तेलङ्गाना इस देश की भौगोलिक स्थिति को स्पष्ट करता है । १० १७. कर्णाटक - मैसूर तथा कुर्ग का सम्मिलित रूप करर्णाटक कहलाता है । कुन्तल देश इसकी प्रपर संज्ञा थी । तारातन्त्र के अनुसार यह महाराष्ट्र के १. Dey, Geog. Dic., pp. 116-17 २. अस्यैव जम्बूद्वीपस्य भरतार्घेऽत्र दक्षिणे देशोऽस्ति मगधाभिख्यो वसुधामुख— परि०, १.७ मण्डनम् । ३. वही, १.१३ ४. ५. ६. ११ ७. वराङ्ग०, १६.३३ Dey, Geog. Dic., p. 34 बसन्त०, ३.४४, ३.२६; कीर्ति०, २.४७ Dey, Geog. Dic,. pp. 103, 242 ८. धर्म०, १७.६५; चन्द्र०, १६.३४; द्वया०, ७.१०५; वसन्त०, ३.४३ ६. आन्ध्रीणां तेलुगु- देश - स्त्रीणाम् । चन्द्र०, १६·३४ पर विद्वन्मनोवल्लभा टीका, पृ० ३९४ १०. Dey, Geog. Dic., p. 7 ११. धर्म०, १७.६५; चन्द्र०, १६.३५; जयन्त०, ११.५५, हम्मीर०, १.६७
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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