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________________ स्त्रियों की स्थिति तथा विवाह संस्था ५०१ था।' वधू वस्त्रालंकारों से विभूषित होकर अवगुण्ठन डाल कर, मातृगृह में माताओं की पूजा कर वर के साथ आसन में बैठ जाती थी। तदनन्तर वर-वधू का 'हस्तमेलन' होता था। प्रायः वर द्वारा श्वसुर से इच्छित वस्तु माँगने का भी रिवाज था तथा इच्छापूर्ति हो जाने पर ही वधू का हाथ छोड़ने की परिपाटी प्रचलित थी। इस अवसर पर मंगल कुम्भ ने पाँच अश्व लेने के बाद ही कन्या का हाथ छोड़ा था । विवाह सम्बन्धी अन्य रीति-रिवाज विवाहावसर पर होने वाले विविध प्रकार के हर्षोल्लासपूर्ण रीति रिवाजों का भी जैन महाकाव्यों में उल्लेख पाया है। सामान्यतया नागरिकों, विशेषकर स्त्रियों के लिए यह अवसर विशेष हर्षोल्लास का होता था।३ स्त्रियाँ विविध प्रकार के नृत्य करती थीं।४ भाण्ड आदि जोर-जोर से तालियाँ बजाकर विभिन्न प्रकार की हास्यपूर्ण मुद्रामों से उपस्थित लोगों का मनोरंजन करते थे ।५ वर पक्ष के लोग रंग भरी पिचकारियों से वर को भिगो भी देते थे तथा एक दूसरे पर भी रंग डाल कर अपना हर्षोल्लास प्रकट करते थे ।६ पद्मानन्द में भी स्त्रियों द्वारा हल्लीसक आदि नृत्य करने तथा गीत-संगीत का आयोजन करने का उल्लेख पाया है। सनत्कुमारचक्रिचरित में रात्रि में 'विदग्धगोष्ठी' के प्रायोजन होने का उल्लेख प्राप्त होता है। आज भी कई प्रान्तों में वधू पक्ष की स्त्रियां वर से कई प्रहेलिकाएँ पूछती हैं । सनत्कुमार में भी 'विदग्ध गोष्ठी' का आयोजन तत्कालीन राजस्थान आदि प्रदेशों के रीति रिवाजों पर महत्वपूर्ण प्रकाश डालता है । विवाह के अवसर पर पहेलियाँ बूझने का एक उदाहरण द्रष्टव्य है १. शान्ति०, ४.११५-१८ २. वही, ४.११६-२० ३. वराम०, १६.१२-१८, तथा पद्मा०, ६.१०२ ४. क्वचिद्विचित्रं नन्तुस्तरुण्यः क्वचिच्च गीतं मधुरं जगुश्च । -वराङ्ग०, १६.१७ तथा पदमा०, ६.१०२ ५. प्रास्फोटय भाण्डाः करतालशब्दान्विडम्बनां चक्रुरितोऽमुतश्च । -वराङ्ग०, १६.१७ ६. वही, २.७४ ७. पद्मा०, ६.१०१-१०२ ८. विदग्धगोष्ठीसुखलाभलालस: प्रश्नोत्तराण्याशु स पृच्छति स्म ताः । -सन०, १६.२८ ६. सनत्कुमारचकि चरित, भूमिका, पृ० ७६
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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