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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
पूजा' भी सम्पन्न होती थी।' कन्या को वस्त्राभूषणादि से सुसज्जित कर मणिवापिका जल से स्नान कराया जाता था ।२ तदनन्दर पुष्पों तथा सुगन्धित पदार्थों से मणिवापिका जल की पूजा की जाती थी। पुरोहितादि देवता स्तुति सम्बन्धी मन्त्रों का उच्च कण्ठ से उच्चारण करते थे। इस प्रकार विवाह विधि सम्पन्न हो जाती थी। गुजरात एवं राजस्थान से सम्बद्ध प्रान्तों से प्रद्युम्न चरित के विवाह वर्णन विशेष प्रभावित रहे हैं ।
५. द्वयाश्रय-द्वयाश्रय महाकाव्य के अनुसार वधू के घर पहुंचने पर वर के माथे पर दही का तिलक लगाया जाता था ।५ कन्या वर के गले में माल्यार्पण करती थी। तदनन्तर वर लवण युक्त अग्नि के पात्र (शराव) को तोड़ कर अन्दर प्रविष्ट होता था।" वर एवं वधू मातगृह (मातृवेश्म) में भी प्रवेश करते थे । ब्राह्मण मन्त्रोच्चारण द्वारा विवाह संस्कार करवाते थे। इस अवसर पर 'सूत्रबन्धन' की क्रिया भी होती थी ।१० विवाहावसर पर लवण युक्त अग्नि शराव का उल्लेख द्वयाश्रय तथा पद्मानन्द महाकाव्यों में समान रूप से होने के कारण ऐसा प्रतीत होता है कि गुजरात आदि प्रदेशों की विवाह विधियों में इस कर्मकाण्ड का विशेष प्रचलन रहा होगा।
६. शान्तिनाथचरित-शान्तिनाथचरित महाकाव्य के अनुसार वर हाथी में चढ़ कर मण्डप द्वार की ओर आता था तथा उसके पीछे स्त्रियों का समूह भी मंगल गीत गाते हुआ आता था । वर के मण्डप द्वार पर पहुंचने पर स्त्रियां अर्घ्य देकर उसे घर के भीतर ले जाती थीं। वर मण्डप पर स्थित सिंहासन पर बैठा दिया जाता
१. जिनपतिपदपूजां संविधामादरेण अभवदथ विवाहः कामरत्योस्तदानीम् ॥
-प्रद्यु०, १०.७७ २. वस्त्रभूषणसमन्विता ततः सा ममज्ज मणिवापिकाजले ।
-वही, ३.६४ ३. सा विगाह्य मणिवापिकाजलं सम्प्रपूज्य कुसुमैः सुगन्धिभिः ।
-वही, ३.६५ ४. देवतास्तुतिविधायकं वचः संनिशम्य विपुलो रसोन्नतः -वही, ३.६७ ५. द्वया० १६.५६ ६. वही, ८.१०८ ७. वही, १६.५८ ८. वही, १६.५६ ६. द्वया०, १६.६३ १०. Narang, Dvyasrayakavya, p. 188 ११ पद्मा०, ६.७१