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________________ ४६८ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज सजीव चित्रण किया है।' इस विवाहानुष्ठान के अवसर पर कोई स्त्री दूब प्रादि माङ्गलिक वस्तुणों से युक्त चान्दी के थाल को लेकर वर के सामने खड़ी होती थी तो दूसरी स्त्री अर्घ्य देती हुई मन्थन दण्ड से वर के मस्तक का स्पर्श करती थी। वर पादुका पहने हुए बाएं पाँव से अग्नि पात्र का स्पर्श करता था। तदनन्तर वर को मातृगृह में ले जाकर स्वर्णासन पर बिठा दिया जाता था।४ वर एवं वधू के हाथ में सूत्र बांधा जाता था और वधू के हाथों में पिप्पल एवं शमी की त्वचा का लेप भी किया जाता था ।५ लग्नावसर पर वर वधू के हाथ को अपने हाथ से ग्रहण करता था। इसी समय 'तारामेलनपर्व' भी सम्पन्न होता था और सभी वधू पक्ष की स्त्रियां गीत गाती हुई वर के वस्त्राञ्चल से वधू के वस्त्राञ्चल को बांध देती थीं।" वर वधू का हाथ पकड़ कर अग्निवेदिका की आठ बार प्रदक्षिणा करता था। सबसे अन्त में 'पाणि मोक्षनपर्व' सम्पन्न होता था । 'पाणिमोक्षन mm १. माणिक्यमण्डपचरा व्यमुचन् धुनार्यो नि.शेषमङ्गलमयप्रभुमङ्गलाय । द्वारे शराववरसम्पुटमुत्कटाग्नि-क्षिप्त त्रट टितिकृल्लवणोणघगर्भम् ॥ -पद्मा०, ६.७१ २. दूर्वादिमाङ्गलिकवस्तु विराजि रूप्यस्थालं विघृत्य पुरतोऽस्थित काऽपि तत्र । -वही, ६.७२ काचिन कुसुम्भवसनाऽञ्चलचुम्बिताग्रं, वैसाख मुद्धृतवती पुरतो वरस्य । -वही, ६.७३ तथा साऽर्ध ददौ। -वही, ६.७७ मन्थेन भालमथ मा स्पृशति स्म हुप्टा। -वही, ६.७८ ३. स्वामी स्ववामचरणेन सपादुकेन, साग्नि शराव सम्पुटमुबिभेद । -वही, ६.७६. ४. कनकविष्टरमध्यतिष्ठत् । -वही, ६.८० ५. सम्पिष्य पिप्पलशमी द्रुम जत्वचौ । -वही, ६.८१ ६. स्वामी मुलग्नसमये प तयोः कराब्जे, जग्राह गर्भकरलेपधरे कराभ्याम् । -वही, ६.८२ ७. अभ्यारतन्नथ मियोऽभिमुखानि तारामेलाख्यपर्वणि। -वही ६.८४ वध्यांशुकाञ्चल युगं वसनाञ्चलेन, विश्वाधिपस्य विबुधाधिपतिर्बबन्ध । -वही, ६६४ ८. तत्रत्य कौतुकग्रहादवियुक्तहस्तं, नाथस्तथैव परितःस्फुरितं हुताशम् । अष्टातिपुष्टधवलान्यथ मङ्गलानि, पत्नीद्वयेन सममभ्रमदभ्रश्रीः । - वही, ६.६६
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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