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स्त्रियों को स्थिति तथा विवाह संस्था
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अन्य महत्त्वपूर्ण लोग इन कलशों को उठाकर वर-वधू का अभिषेक करते थे।' कभी-कभी विवाहोत्सव के साथ-साथ युवराज का राज्याभिषेक संस्कार भी सम्पन्न होता था इस अवसर पर राजा युवराज एवं वर के मस्तक पर पट्टा बांधता था । वराङ्गचरित के दो स्थलों पर विस्तारपूर्वक राजकुमार वराङ्ग के विवाहोत्सव का वर्णन पाया है तथा दोनों ही अवसरों पर राज्याभिषेक की क्रियाएं भी विवाह विधि के साथ अनुष्ठित हुई हैं। अग्नि, धर्म एवं जल को साक्षी मान कर विवाह विधि का समापन होता था।
विवाहोत्सव के बाद अभ्यागत अतिथि राजाओं को ससम्मान बिदाई दी जाती थी। बिदाई देने वालों में प्रायः राजा, पटरानी तथा पुत्र आदि होते थे। वराङ्गचरित महाकाव्य के विवाह वर्णन दक्षिण भारत स्थित कर्नाटक देश की प्रान्तीय चेतनाओं से प्रभावित जान पड़ते हैं ।
२ पदमानन्द-पमानन्द महाकाव्य में वणित विवाह विधि के अनुसार सर्वप्रथम कन्यापक्ष की स्त्रियाँ वधू को वस्त्राभूषण आदि पहनाती थीं।" वर को भी स्नानादि करवा कर वस्त्राभूषण पहनाए जाते थे। उसके बाद वर को यान पर बैठाकर मण्डप तक ले जाया जाता था। मण्डप द्वार के समक्ष स्त्रियां अग्नियुक्त मिट्टी के पात्र (शराब) में लवण डाल कर मङ्गल-सम्पादन करती थीं। कवि ने इस अवसर पर अग्नि में लवण के जलने से 'चटत्-त्रटत्' की ध्वनि होने का
१. अन्ये च तेषां नपमन्त्रिमुख्या अनन्तचित्राजितदेवसाह्वाः ।
कुम्भवलद्रत्नमयैरनेकैः शुद्धाम्बुपूर्णैश्च समभ्यषिञ्चन् ।। -वराङ्ग०, २.७२ २. विशेष द्रष्टव्य-वराङ्ग०, सर्ग-२ तथा १६ ३. ज्वलकिरीटं प्रणिधाय मूनि स्वयं नरेन्द्रस्तु बबन्ध पट्टम् ।
-वही, १६.२० ४. वही, २.६४ तथा १६.८ ५. कृत्वाग्निधर्मोदकसाक्षिभूतं कश्चिद्भटाय प्रददौ सुनन्दाम् ।
-वही, १६.२० ६. श्रीधर्मसेनः सकलत्रपुत्रः सन्मानदानैरभिसंप्रपूज्य ।
लोकोपचारग्रहणानुवृत्त्या विसर्जयामास वसुंधरेन्द्रान् । -वही, २८७ ७. पद्मा०, ६.२६.३५ ८. स्वामी स्वयं स्नपितलेपितभूषिताङ्गः । -वही, ६ ६६ ६. उत्तीर्य यानवरतो वरतोरणाग्रे ।
-वही, ६.५०