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________________ स्त्रियों की स्थिति तथा विवाह संस्था ४६५ गगनविलासपुर के राजा पवनगति की पुत्री कनकवती के विवाहार्थ सेना के मध्य में से राजकुमार जयन्त का अपहरण होने का उल्लेख आया है ।' बाद में जयन्त एवं कनकवती का विवाह सम्पन्न किया गया । वर एवं वधू के चयन का आधार प्राय: पूर्व नियोजित विवाह माता-पिता की आज्ञा से होते थे। उचित प्रायु के प्राप्त होने पर माता-पिता अथवा मन्त्री प्रादि महत्त्वपूर्ण लोग वर एवं वधू की योग्यतानों पर पूरी तरह विचार करने के बाद ही अन्तिम निर्णय लेते थे।३ वर की सामान्यतयाकुलीन होना, विद्यामों अथवा कलाओं में पारंगत होना, बुद्धिमान होना, गुणज्ञ होना, रूप-सौन्दर्य युक्त होना, पराक्रमी होना प्रादि प्रमुख योग्यताएं थीं। इन योग्यतामों में भी पराक्रमी होना तथा रूप सौन्दर्य युक्त होना विवाह के लिए आवश्यक योग्यताएं मानी जाती थीं।५ कुछ ऐसे भी उल्लेख प्राप्त होते हैं जहाँ कुल आदि की उपेक्षा कर वीरता एवं सुन्दरता के कारण ही माता-पिता कन्यादान की स्वीकृति दे देते थे। वधू का चयन करते समय भी उसके कुल, पायु, जाति प्रादि का विचार किया जाता था। इनके अतिरिक्त वर के अनुरूप रूप-सौन्दर्य शरीराकृति एवं कला दक्षता प्रादि वधू के गुणों का विशेष महत्त्व था। कन्या का सुन्दर होना अत्यावश्यक गुण माना जाता १. कतिपयदिवस व्यतिक्रमेऽस्य श्रवसि विवेश वचो यथात्मसैन्यात् । नप तव तु जयं जहार कश्चिन्निधिमिव भूमितलाददृष्ट रूपः । -जयन्त०, १२.३ २. वही, १३ ६५-६६ वराङ्ग०, २.१७, २०, नेमि०, ११.१०, ५२ ४. व्यायामविद्यासु कृतप्रयोगो नीती कृती सर्वकलाविधिज्ञः । वृद्धोपसेवाभिरतिहितात्मा सुबुद्धिमान् पौरुषवान्कुमारः ।। -वराङ्ग०, २.१ नानावीरोत्पत्तिलब्धप्रशंसे वंशे तावज्जन्मरम्यं च रूपम् । शीलं विश्वप्राणिलोकानुकूलं किं तन्नेमेर्यन्न सम्बन्धहेतुः ।। --नेमि०, ११.५२ ५. चन्द्र०, ६.६१.७१, वराङ्ग०, १६.७२, २०.४१ ६. चन्द्र०, ६.७१ कन्यापि तेनं व समान कल्पा कलागुणश्चापि वयोवपुर्ध्याम् । स चापि तस्या यदि युक्तरूप: कितन्यदिष्यते तयोन लोके ।। -वराङ्ग०, २.४६ प्रष्टो नः कन्यका: सन्ति रूपलावण्यबन्धुरा । कलाब्धिपारद्रश्वर्यो गुणश्वर्यो अप्सरसमा: । -परि०, २.८५ तथा तु० नेमि०, ११.४८, धर्म० ६.४०, चन्द्र० ६.६३, प्रद्यु० ६.१५६
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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