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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
मृत्यु हो जाने के उपरान्त पति से अत्यधिक स्नेह रखने वाली कुछ स्त्रियाँ पतिवियोगजन्य दुःख के भावावेश में प्राकर अग्नि में जल कर मर जाना उचित समझती थीं।' बाणभट्टकृत हर्षचरित से भी ज्ञात होता है कि प्रभाकरवर्धन की मृत्यु हो जाने पर उसकी पत्नी यशोमती अग्नि प्रवेश के लिए सन्नद्ध थी । इतिहासकारों के अनुसार मध्यकाल में हिन्दू समाज के अभिजात वर्ग में सती-प्रथा का विशेष प्रचलन था। राजस्थान के ८१० ई० के उल्लेख से भी राजपूत जाति में सती प्रथा के प्रचलित होने के प्रमाण मिलते हैं 3 चौदहवीं शताब्दी के हम्मीर महाकाव्य में भी अलाउद्दीन की सेना द्वारा दुर्ग पर पूर्ण अधिकार कर लेने पर राजा हम्मीर के जीवित रहते हुए ही उसकी रानियों ने जब देखा कि अब शत्रु से बचना दुर्लभ है तो अग्नि प्रवेश द्वारा आत्महत्या कर ली। इसके बाद राजा हम्मीर भी शत्रु सेना के साथ युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुअा था । हम्मीर महाकाव्य के इस दृष्टान्त को सतीप्रथा से सम्बद्ध करना उचित जान नहीं पड़ता किन्तु इससे इतना तो द्योतित होता है कि प्रायः शत्रु राजाओं के हाथों से अपने चरित्र की रक्षा करने के प्रयोजन से चाहमान आदि वंशों की राजपूत स्त्रियाँ मर जाना भी उचित समझती थीं।
वराङ्गचरित महाकाव्य में सिद्धान्त रूप से अग्नि प्रवेश, रज्जु-बन्धन आदि उपायों से आत्म हत्या करने की निन्दा की गई है । ६ वराङ्गचरित के सन्दर्भ में यह भी कहा जा सकता है कि जैन समाज में सती प्रथा का विरोध किया जाने लगा था। मध्यकालीन भारत के अन्य कई शास्त्रकारों ने भी सती-प्रथा का घोर विरोध किया जिनमें मेधातिथि तथा देव भट्ट के अतिरिक्त गद्यकार बारण के नाम भी विशेषतः उल्लेखनीय हैं ।
१. बृहस्पतिस्मृति, ४८३-८४ २. जयशंकर मिश्र, प्राचीन भारत का सामाजिक इतिहास, पृ० ३६५ ३. वही, पृ० ३६७ ४. हम्मीर०, १३.१८५ ५. वही, १३.२२६ ६. शस्त्ररज्ज्वादिघातश्च मण्डलेन च साधनम् ।
भगुप्रपतनं चैव जलवह्निप्रवेशनम् ।। -वराङ्ग०, १५.६५ ७. वही, १५ ६४-७० ५. जयशङ्कर मिश्र, प्राचीन भारत का सामाजिक इतिहास, पृ० ३६७