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________________ ४४६ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज चिकित्सा एवं प्राथमिक उपचार सामान्यतया 'वैद्य' रोगों का उपचार करते थे। मंत्रवेत्तानों द्वारा रोगों को शमन करने के भी उल्लेख प्राप्त होते हैं।' मूर्छा, ज्वर आदि सामान्य रोगों का प्राथमिक उपचार वैद्यों के बिना बुलाए भी सम्भव था। रोगों के प्राथमिक उपचारों में चन्दन जल के छोटों से चेतना जागृत करना, चन्दन आदि शीतल लेपों द्वारा ज्वर-शमन करना आदि मुख्य प्राथमिक चिकित्सा पद्धतियां थीं।२ द्विसन्धान में कपूर की भस्म से थकान दूर होने का उल्लेख पाया है। खली खिलाने से गाय के दूध में वृद्धि होने की संभावना की जाती थी। वियोगजन्य अस्वस्थताओं में कपोलों के सूखने तथा चेहरे के पीला पड़ने आदि रोगों का भी उल्लेख पाया है। इस अवस्था में भोजन आदि की इच्छा नहीं होती थी तथा ज्वर के बिना भी शरीर में दाहकत्व की स्थिति मानी जाती थी। आम्रफल को भूख, प्यास तथा थकान दूर करने के लिए विशेष रूप से उपयोगी माना गया है। पद्मामन्द महाकाव्य में माम्रफल के गुणों की प्रायुर्वेदीय व्याख्या भी की गई है । ' कुपथ्य सेवन से रोग मुक्ति प्रसंभव मानी जाती थी। वैद्य लोग नाड़ी देखकर रोग की परीक्षा करते थे ।१० सिंह द्वारा कन्धे के दातों से पाहत होने ११ एवं असंख्य शस्त्रादि लगने से लहु-लुहान-शरीर१२ का वैद्यों द्वारा उपचार करने का उल्लेख पाया है । सिंहों के १. मन्त्रवादिगणर्वेद्यवृन्दैरपि परः शतैः । -हम्मीर०, ४.७१ २. पाश्वासयंश्चन्दनवारि सेकैरवोचदेवं कृपयेव भूपः । -यशो०, २.७० चन्दनोदकसंमिश्रर्गात्रसन्धिषु पस्पृशे । -वराङ्ग०, १५.२४ तथा। रससेकः खलु चन्दनस्य तापम् । -चन्द्र०, ६.६७ ३. दग्धानि कयूं ररजांसि भूयाः स्ववर्मणोऽन्तश्चकरुः श्रमार्ताः । -द्विस०, ५.५६ ४. अहो खलस्यापि महोपयोग:-क्षीरं क्षरन्त्यक्षत एव गावः ॥ -धर्म०, १.२६ ५. चन्द्र०, ६.६२ ६. वही, ६.६२ ७. पद्मा०, २.५६ ८. वही, २.५३-५६ ६. चन्द्र०, १.७१ १०. परि०, २.२२५-२६ ११. हम्मीर०, ४,६६ १२. वराङ्ग०, १४.४८-४६
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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