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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
जैन शिक्षा के मुख्य केन्द्र जैन मुनियों के श्राश्रम थे । इन श्राश्रमों में अनेक जैनसाधुत्रों द्वारा शिक्षा प्राप्त करने के उल्लेख मिलते हैं । इनमें जैन साध्वियाँ भी शिक्षा प्राप्त करती थीं। आलोच्य काल में 'अग्रहार - ग्रामों' का विशेष महत्त्व रहा था । ब्राह्मण संस्कृति से सम्बद्ध शिक्षा के ये प्रमुख केन्द्र बने हुए थे । आश्रमों तथा अग्रहार ग्रामों का संरक्षण राजा के अधीन होता था । उ
४. पाठ्यक्रम
प्राचीन भारतीय शिक्षा व्यवस्था में वैदिक, बौद्ध एवं जैन संस्कृति आधार पर शिक्षा के पाठ्यक्रम को निर्धारित करने की विशेष प्रवृत्ति देखने में श्राती है । विश्वविद्यालीय स्तर पर यद्यपि पाठ्यक्रम का स्वरूप तुलनात्मक एवं समाज सापेक्ष रहा था तथापि तीनों शिक्षा पद्धतियों में परम्परागत विद्याचेतना की स्थिति भी स्पष्ट देखने को मिलती है ।
वैदिक विद्या परम्परा
उपनिषदों के समय से ही 'परा' तथा 'अपरा' दो वर्गों में अध्ययन विषयों को समाविष्ट किया जाने लगा था । 'परा' अध्यात्म विद्या को कहते थे 'अपरा' के अन्तर्गत चार वेद, छह वेदाङ्ग कुल दस विद्याएं आतीं थीं । 2 छान्दोग्योपनिषद् के अनुसार वैदिक शिक्षा व्यवस्था में चार वेद, इतिहास पुराण, व्याकरण, श्राद्धकल्प, गणित, उत्पातज्ञान, निधिशास्त्र, तर्कशास्त्र, नीतिशास्त्र, देवशास्त्र, ब्रह्मविद्या, भूतविद्या, क्षत्रविद्या, नक्षत्रविद्या, सर्प द्या, देवजनविद्या आदि विषयों को पढ़ाया जाता था । शतपथब्राह्मण वेद के सहायक अध्ययन विषयों के रूप में अनुशासन (वेदाङ्ग ) ' विद्या (विज्ञान) वाकोवाक्यम् ( वादविवाद ), इतिहास पुराण तथा गाथानाराशंसी आदि अध्ययन विषयों का उल्लेख करता है । ७ पौराणिक युग में शिक्षा के पाठ्यक्रम के रूप में वेद, पुराण, गाथा, इतिहास, धर्मशास्त्र, आयुर्वेद, धनुर्वेद, युद्ध विद्या के साथ-साथ सांख्य, योग, न्याय, वेदान्त,
१. वराङ्ग०, ३०.२
२.
ताश्च प्रकृत्यैव कलाविदग्धा जात्यैव धीरा विनयैविनीताः । आचारसूत्राङ्गनयप्रभङ्गानाधीयते स्मात्पतमै रहोभिः ॥
—-वराङ्ग०, ३१.७
३. Thapar, Romila, A History of India, Vol. I, p. 252,
तथा द्वया०, १५.१२०-२१
४. मुण्डकोपनिषद्, १.१.४
५. वही, १.१.५
६. छान्दोग्योपनिषद्, ७. १
७. शतपथब्राह्मण, ११.५.६.८