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________________ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज सामान्य रूप से महान् पुरुषों के तपादि करने के स्थान तीर्थस्थल हो जाते । ऐसे स्थानों के दर्शन, पूजा और स्तुति से पुण्य प्राप्त होने की मान्यता तत्कालीन समाज में प्रचलित थी । १ वराङ्गचरित महाकाव्य में निम्नलिखित हिन्दू तीर्थ स्थानों का विशेष उल्लेख प्राया है ३७४ १. स्वामिगृह - स्वामी कार्तिकेय ने कुमारावस्था में ही घोर तप किया था । परिणामतः उनकी तपोभूमि स्वामिगृह ( सामिगृह ) के नाम से प्रसिद्ध तीर्थ - स्थल बन गई | 3 २. कुमारी ( कन्या कुमारी ) - दक्षिण भारत से सम्बद्ध इस प्रदेश में 'कुमारी' ने अनेक वषों तक घोर तपस्या की थी। 3 ३. भागीरथी (गंगा) - राजा सगर के पौत्र भागीरथ ने अपने पूर्वजों के उद्धारार्थं गंगा को पृथ्वी में लाने के लिए अनेक वर्षों तक तपस्या की थी । फलतः 'भागीरथी' सर्वाधिक पवित्र मानी जाने लगी । ४ ४. कुरुक्षेत्र – प्रसिद्ध वंश कुरुवंश में उत्पन्न हुए कुरु नाम के महात्मा ने अपनी प्रजा को सुखी बनाने के लिए जिस विशाल प्रदेश में तपस्या की थी वह 'कुरुक्षेत्र' के रूप में प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बन गया । इसी स्थान पर पाण्डवों ने भी त्मशुद्धि के लिए तपस्या की थी । ६ १. तीर्थानि लोके विविधानि यानि तपोधनैरध्युषितानि तानि । स्तुत्यानि गम्यानि मनोहराणि जातानि पुंसां खलु पावनानि ॥ - वराङ्ग०, २५.५१ २. वराङ्ग०, २५.५३ तथा तु० पाठभेद 'सामिगृह' ३. यस्याः कुमार्यास्तपसः प्राभावात्प्रकाशिता सा खलु दक्षिणाशा । ततः कुमारी वरधर्मनेत्री बहुप्रजानामभवत्स तीर्थम् ॥ — वही, २५.५४ ४. भागीरथिश्चक्रधरस्य नप्ता वर्षाण्यनेकानि तपः प्रचक्रे । अधोगतानुद्धरणाय धीरो भागीरथी - पुण्यतमा ततोऽभूत् ॥ —वराङ्ग०, २५.५५ ५. कुरुर्महर्षिः कुरुवंशजातः कुमारभावे स तपस्त्वतप्तम् । प्रजाहिताय प्रथितप्रभावस्ततः कुरुक्षेत्रमभूत्प्रधानम् ॥ —वराङ्ग०, २५.५६ ६. प्रतापयोगं परिगृह्य धीराः पाण्डोः सुताः क्लेशविनाशनाय । प्रचक्रिरे तत्र तपोऽतिघोरं मातापनीतेन पवित्रमासीत् ॥ - वही, २५.५७
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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