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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
हिंसा वाले स्थानों में संघ सहित जाते थे तथा इस प्रथा का धार्मिक रूप से विरोध करते थे । ' सातवीं-आठवीं शताब्दी में वराङ्गचरित में प्रतिपादित पशुहिंसा सम्बन्धी उल्लेखों से ज्ञात होता है कि कर्नाटक आदि जिन प्रदेशों में जैन धर्म राजधर्म के रूप में प्रतिष्ठित था वहाँ पर बलिप्रथा तथा यज्ञों में होने वाली पशुहिंसा का बहुत जोरदार शब्दों में विरोध किया जाता था । जटासिंह ने राजा क्रूर के दृष्टान्त द्वारा यह तर्क दिया है कि जब कुत्ते से डरकर मर जाने वाले ब्राह्मण की हत्या से निर्दोष क्रूर को नरक मिल सकता है तो यज्ञावसरों आदि पर जानबूझ कर मारे जाने वाले पशुओं की हत्या के पाप से नरक-मुक्ति कैसे संभव है ? 3 यशोधरचरित में बलिप्रिय राजा की भी घोर निन्दा की गई है ।
देवोपासना
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ब्राह्मण धर्म के अन्तर्गत शिव, ५ विष्णु, ६ सूर्य आदि देवताओं के प्रतिरिक्त ब्रह्मग्नि, इन्द्र, कार्तिकेय ११ श्रादि देवताओं की श्राराधना करने के उल्लेख भी मिलते हैं । वराङ्गचरित में विभिन्न देवताओं के अस्त्र-शस्त्रों का भी उल्लेख आया है जिनमें त्रिशूल, वज्र, चक्र, धनुष, गदा, शक्ति, खड्ग तथा तोमर श्रादि शस्त्र विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं । इनसे स्पष्ट हो जाता है कि देवों की पौराणिक देवशास्त्रीय मान्यताएं समाज में अत्यधिक लोकप्रिय होती जा रहीं थीं । १२ शिव, विष्णु आदि महत्वपूर्ण देवों की चर्चा सम्प्रदायों के अन्तर्गत की गई
१. यशो०, १.२६
२. यज्ञे वधे नैव वधोऽस्ति कश्चिद्वध्यो ध्रुवं याति सुरेन्द्रलोकम् । इदं वचो धूर्तविटस्य वेद्यं दयोपशान्तिश्रुतिवर्जितस्य ॥
३. एकस्य विप्रस्य विराधनेन श्वभ्रं गतः क्रूर इति श्रुतिश्चेत् । समस्त सत्वातिनिपातनेन यज्ञेन विप्रा न कथं प्रयान्ति ।।
४.
यशो०, १.५३
५.
वराङ्ग०, २५.७४
६. वराङ्ग०, २५.७६, ७८ नेमि० १.७५-७६
७. वराङ्ग०, २४.३६
८.
६. वराङ्ग०, २५ ७५
१०. वही, २५.७६९ ११. वही, २३.७ε १२ . वही, २५.८०
—वराङ्ग०, २५.१४
वराङ्ग०, २५.७६, जयन्त०, १.१
—वराङ्ग०; २५.२५