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________________ धार्मिक जन-जीवन एवं दार्शनिक मान्यताएँ ३५६ १ (ग) नौ नारायण - १. त्रिपृष्ठ २. द्विपृष्ठ ३. स्वयंभू ४. पुरुषोत्तम ५. नृसिंह ( पुरुष सिंह ) ६. पुण्डरीक ७. पुरुष दत्त ८. नारायण तथा ६. कृष्ण । (घ) नौ बलराम - १. विजय २. अचल ३. धर्म ४. सुप्रभ ५. सुदर्शन ६. नन्दि ७. नन्दि मित्र ८. राम तथा ६. पद्म (बलदेव) - वराङ्गचरित के अनुसार । १. अचल, २. बिजय, ३. भद्र, ४. सुप्रभ, ५. सुदर्शन, ६. श्रानन्द, ७. नन्दन ८. पद्म तथा 8. राम - पद्मानन्द महाकाव्य के अनुसार । - (ङ) नौ प्रतिनारायण ३ – १. अश्वग्रीव २. तारक ३. समेरक (मेरक) ४. मधुकैटभ ५. निशुम्भ ६. बलि ७ प्रह्लाद (प्रहरण) ८. रावण ( दशकन्धर) तथा ६. जरासंध । ७. जैन मुनिधर्म भोग से विरक्ति की ओर जैन धर्म मूलतः एक निवृत्तिप्रधान धर्म हैं । 'सागार' तथा 'अनागार' इसके दो महत्त्वपूर्ण सोपान हैं । जन्म-जन्मान्तरों से उपजे श्रविद्या जनित संस्कारों के प्रभाव से मुक्ति न पा सकना भी मानव की एक सबसे बड़ी समस्या रही है । पं० आशाधर कहते हैं 'संसार के विषय भोगों को त्यागने योग्य जानते हुए भी मनुष्य मोहवश उन्हें छोड़ने में असमर्थ है ।' ४ उसके लिए वह सर्व प्रथम गृहस्थ धर्मं ( सागार धर्म ) का अधिकारी है । 'सागार' धर्म जहाँ गृहस्थ को सांसारिक प्रपञ्चों से जोड़े रहता है वहां दूसरी ओर उसमें विषयभोगों की क्षणिकता एवं सांसारिक मोह की निस्सारता के प्रति भी एक प्रान्तरिक प्रतिक्रिया उपजती रहती है और एक ऐसा अवसर भी आ पहुंचता है जब वह निवृत्ति-मार्ग का पथिक बनने की अपेक्षा से 'अनागार' धर्म अर्थात् मुनिचर्या के लिए दीक्षित हो जाता है श्रात्मोत्थान के प्रति यह विस्फोटक क्रान्ति अचानक ही नहीं हो जाती कभी इस प्रक्रिया से गुजरते गुजरते अनेक जन्मों की यात्रा भी तय होती है । । वास्तव में बल्कि कभीकरनी १. बराङ्ग०, २७.४२, पद्मा०, १.७४.७५ २. बराङ्ग०, २७.४३, पद्मा०, १.७३ ३. बराङ्ग०, २७.४४, पद्मा०, १.७५-७६ ४. धर्मामृत, ( सागार), भूमिका, पृ० १ 11 जैन धर्म की यह विशेषता रही है कि उसमें 'सागार' तथा 'अनागार' धर्म चेतना की आचार संहिता को अत्यन्त मनोवैज्ञानिक ढंग से व्यवस्थित किया गया है । गृहस्थ के रूप में द्वादश व्रतों श्रादि का पालन करते हुए व्यक्ति मानसिक रूप से इस योग्य हो जाता है कि वह यदि मुनि धर्म को अपनाना चाहे तो महाव्रतों' 2
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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