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जन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
६. दीपोत्सव-भगवान् महावीर की निर्वणतिथि के रूप में इस पर्व को जैन समाज बहुत उत्साह से मनाता था। इस उपलक्ष्य में सम्पूर्ण नगर को दीपकों से सजाया जाता था।'
तीर्थयात्रा-महोत्सव
सोमेश्वर कृत कीर्तिकौमुदी महाकाव्य में सामूहिक रूप से तीर्थयात्रा करने के उद्देश्य से सम्बद्ध एक यात्रा-उत्सव विशेष का भी वर्णन पाया है । इस अवसर पर वस्तुपाल तथा उसके साथ जाने वाले प्रजा वर्ग ने विभिन्न तीर्थ स्थानों के दर्शन किए । प्रयाण करने से पूर्व शुभ मुहूर्त निकाला गया था। इस धर्मयात्रा उत्सव के अवसर पर रथ-वाहन प्रादि के साथ-साथ विशाल जन समूह भी प्रयाण कर रहा था। मार्ग में याचकों को दान आदि के रूप में अनेक वस्तुएं प्रदान की गयौं । जैन परम्परानुमोदित माङ्गलिक लोकगीत गाकर नागरिक अपना उत्साह प्रकट कर रहे थे। मार्ग में जितने भी जैन मन्दिर पाते थे उनकी अर्चना करने के बाद ही जलूस आगे बढ़ता था।"
६. जैन देवशास्त्र तथा पौराणिक विश्वास
जैन देवों का वर्गीकरण
जैन देवशास्त्र के अनुसार देवलोक अर्थात् स्वर्ग में चार प्रकार के देवों की स्थिति मानी गई है :-१. भवनवासी देव -२. व्यन्तर देव, ३. ज्योतिष्क देव तथा ४. वैमानिक देव ।५ १. भवनवासी देव दश प्रकार के हैं—सुपर्ण, नाग, उदधि, दिक्, द्वीप, अग्नि, विद्युत, स्तनित (मेघ), अनिल तथा असुर । २. व्यन्तर देवपाठ प्रकार के कहे गये हैं - भूत, पिशाच, गरुड, यक्ष, गन्धर्व, किन्नर, राक्षस तथा किम्पुरुष । ३. ज्योतिष्कदेव-पांच प्रकार के हैं -सूर्य, चन्द्रमा, तारकवर्ग, ग्रह
१. वराङ्ग०, २३.८, चन्द्र०, २.१३० २. द्रष्टव्य, कीर्तिकौमुदी, सर्ग ६ तथा सुकृतसङ्कीर्तन, सर्ग-9, ८ तथा ६ ३. कीर्ति०, ६.६ ४. वही, ६.१५-२० ५. वैमानिकानां भवनाधिपानां ज्योतिर्गणव्यन्तरसंज्ञकानाम् ।
-वराङ्ग०, ६.१ तथा चन्द्र०, १८.४८, धर्म० २१.६० ६. वराङ्ग०, ६.४, चन्द्र०, १८.४८, धर्म०, २१ ६१ ७. वराङ्ग०, ६.५, चन्द्र०, १८४६, धर्म०, २१.६३