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धार्मिक जन-जीवन एवं दार्शनिक मान्यताएं
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पाटण, स्तम्भतीर्थ, धोल्का, शत्रुञ्जय पर्वत, माउण्ट आबु, उज्जयन्त पर्वत
आदि का जैन महाकाव्यों में विशेष उल्लेख पाया है। चालुक्य कुमारपाल तथा मंत्री वस्तुपाल की तीर्थ यात्राओं के प्रसङ्ग में इन धार्मिक तीर्थस्थानों की विशेष चर्चा हुई है।
कीतिकौमुदी,' द्वयाश्रय प्रादि ऐतिहासिक महाकाव्यों से राजा कुमारपाल तथा अमात्य वस्तुपाल की तीर्थ यात्राओं के उल्लेख प्राप्त होते हैं । गिरनार मन्दिर में स्थित एक शिलालेख तथा कीर्तिकौमुदी के उल्लेखों से प्रतीत होता है कि १२२१ ईस्वी में वस्तुपाल को 'संघाधिपति' की उपाधि प्राप्त हो चुकी थी। तदनन्तर उसने शत्रुजय, उज्जयन्त (गिरनार) मादि तीर्थ स्थानों की यात्रा की । वस्तुपाल धार्मिक सहिष्णुता के लिए प्रसिद्ध था। उसने ब्राह्मण धर्म के प्रति भी अपनी अपार श्रद्धा का प्रदर्शन किया। देव पतन में शिव-सोमनाथ की पूजा करने के अनेक उल्लेख प्राप्त होते हैं। राजा के आदेशानुसार वस्तुपाल ने माणिक्य खचित मुण्डमाला से सोमेश्वर की अर्चना की। प्राचार्य हेमचन्द्र तथा राजा कुमारपाल द्वारा भी सोमनाथ-मन्दिर की यात्रा की गई। इस अवसर पर हेमचन्द्र ने सोमनाथ की स्तुति में एक संस्कृत पद्य की रचना भी की थी।
१. कीर्ति०, सर्ग०६ २. द्वया०, २०.६०-१०० ३. सं० ७७ वर्षे श्री शत्रुण्यज्योज्जयन्तप्रभृतिमहातीर्थयात्रोत्सवप्रभावाविभूत
श्रीमद्देवाधिदेवप्रस्तदासादितसंघाधिपत्येन श्रीवस्तुपालेन Burgess, J. Arch., Sur. W. Ind., No. 2, Memorandum of the Antiquities at Dabhoi, etc. p. 22 & Arch. Report. W. Ind. Vol. II, p. 170. तथा तु०-चिकीर्षता श्रीसचिवेन तीर्थयात्राsथ सोऽयं समय: समेतः ।, धराधरं धर्मधुरन्धरः श्रीशत्रुञ्जयं शत्रुजयी जगाम ।।, तमुज्जयन्तापरसंज्ञमद्रिमाजाविधेयाखिलसंघलोकः । - कीर्ति० ६.१, २१,३८
Munshi, K.M., Glory that was Gurjara Desa, p. 361-62 ५. माणिक्यखचितां मुण्डमालमयमकारयत् ॥ -वस्तु०, ६.५३५-३६ तथा तु०
अभ्यर्च्य भक्त्या भवमत्र तीर्थे, श्री सोमनाथाभिधया प्रसिद्धम् ।। प्रत्तप्रसूनाञ्जलिना प्रदत्तो, जलाञ्जलिस्तेन पुनर्भवाय ॥
-कीर्ति०, ६.७१ ६. Munshi, Glory that was Gurjara Desa, p. 362