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________________ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज और इनका मुख, फलों, फूलों के गुच्छों से अथवा सफेद वस्त्र से ढक दिया जाता था।' प्रतिमा अभिषेक के अवसर पर एक हजार पाठ बड़े-बड़े कलशों में शीतल जल भरा रहता था जिनके मुख कमलों, अथवा नील कमलों से ढके रहते थे। चार प्रकार की उपमानिकाओं (मिट्टी के घड़ों) को हल्दी, सुगन्धित द्रव्य तथा मोदन से अलंकृत किया जाता था। इन वस्तुओं के अतिरिक्त अनेक प्रकार के फल, सुगन्धित द्रव्य, विविध प्रकार के नैवेद्य, पुष्प मालाएं तथा हवन सामग्री (विपञ्चिका) भी पूजा मण्डप में विद्यमान रहती थी। अभिषेक क्रिया के अवसर पर इन सामग्रियों का विशेष उपयोग होता था। स्नपनाचार्य (पुरोहित) तालाब से जिनेन्द्र की प्रतिमा को स्नान कराकर निकालते थे तथा मौन धारण करते हुए इसे अभिषेक शाला में विशाल प्रासन पर स्थापित करते थे। सर्वप्रथम जिनेन्द्रदेव को प्रणाम कर एक बड़ी झारी से प्रतिमा का अभिषेक किया जाता था।' प्रतिमा को कपड़े से पोछ लेने के उपरान्त बाएं हाथ की हथेली पर अर्ध्य-पात्र लेकर 'जिनादिभ्यः स्वाहा' का उच्चारण करते हुए हाथ के अंगूठे के माध्यम से प्रय चढ़ाया जाता था। तदनन्तर मन्त्रोच्चारण सहित जिन प्रतिमा के उत्तमाङ्ग पर अर्घ्य दिया जाता था। उपमानिकानों तथा १०० घड़ों के जलों से अभिषेक कराने के पश्चात् प्राचार्य उबटन से प्रतिमा का लेप करते थे। इसके बाद सुन्दर प्राभूषणों तथा पुष्पमालादि से जिनबिम्ब का शृङ्गार किया जाता था। इस प्रकार हम देखते हैं कि वराङ्गचरित में प्रतिमा अभिषेक विधि का भव्य वर्णन चित्रित है जो तत्कालीन विशेषकर कर्नाटक में प्रचलित जैन पूजा-पद्धति पर महत्वपूर्ण प्रकाश डालता है। १. वराङ्ग०,२३.२५, वसन्त०, १०.६७ २. वराङ्ग०, २३.२६, धर्म०, ८.२८.३२, वसन्त०, १०.६८ ३. वराङ्ग०, २३.२७ ४. वही, २३.२६-३० ५. वही, २३.६० ६. वही, २३.६१ ७. वही, २३.६२ ८. वराङ्ग०, २३.६३, वसन्त०, १०.१२ ६. वराङ्ग०, २३.६४-६७, वसन्त०, १०.७४-७६
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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