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________________ धार्मिक जन-जीवन एवं दार्शनिक मान्यताएं ३३३ महोत्सव का आयोजन करना, बारह प्रकार के व्रतों का पालन करना, चतुर्विध ध्यान तथा चतुर्विध संघ का सम्मान करना आदि कृत्य सम्मिलित थे ।' जिनेन्द्र पूजा अन्य धर्माचरणों की तुलना में जिनपूजा सर्वाधिक लोकप्रिय थी। सामान्य लोगों के लिए भी अन्य व्रताचरणों की अपेक्षा जिनपूजा अत्यधिक सुगम व सहज थी। ऐसा विश्वास किया जाता था कि जिनेन्द्र के प्रति भक्तिभाव रखने से मनुष्य संसार की सभी विपत्तियों से मुक्त होकर सुखों के विशाल भण्डार को प्राप्त कर सकता है। पूर्वजन्मों के पापों को नष्ट करने के लिए जिनेन्द्र पूजा का विशेष महत्त्व है।५ जिनेन्द्र भगवान की प्रतिमा के माध्यम से उनके आदर्शों पर आचरण करने के कारण तीनों लोकों का कल्याण होने की मान्यता प्रसिद्ध थी। इसके लिए श्रद्धा एवं विधि पूर्वक प्रतिदिन प्रातः जिन-प्रतिमा की पूजा करने का विधान था। प्रतिमा अभिषेक प्रतिमा के अभिषेक के अवसर पर स्वर्ण, रजत, कांस्य, तथा तांबे के पात्र, विशाल नादें, सोने के शंख, अनेक प्रकार के कलश, झारियां, पालिकाएं, आवर्तक, स्वर्ण यन्त्र, नदियों, झरनों, कूपों, जलाशयों, तीर्थस्थानों के जलपात्र भरे रहते थे ।'• सोने-चांदी के बने हुए कुछ कलशों में दूध, दही, घृत आदि वस्तुएं होती ? १. पद्मा०, ६.११५-११८, वसन्त०, १०.७३-६० २. वराङ्ग०, २२.२३, चन्द्र०, १७.३२-३३ ३. वराङ्ग०, २२.४५, चन्द्र०, १७.३६ ४. वराङ्ग०, २२.३७-३८, चन्द्र०, १७ ३४ . ५. अनेकजात्यन्तरसंचितं यत्पापं समर्था प्रविहर्तुमाशु । -वराङ्ग०, २२ ४०, चन्द्र०, १७.३३ ६. पूज्यानि तान्यप्रतिशासनानि रूपाणि लोकत्रयमङ्गला नि । -वराङ्ग०, २२.४२ ७. प्रातः कुमारः कृतमङ्गलार्थो जिनेन्द्रबिम्बार्चनतत्परोऽभूत् ।। -वही, ११.४८ पद्मा०, ६.१०० ८. वराङ्ग०, २३.२२ ६. वही, २३.२३ १०. वही, २३.२४, वसन्त०, १०.६७
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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