SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 353
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धार्मिक जन-जीवन एवं दार्शनिक मान्यताएं ३१६ २ 3 ૪ देवताओं में ब्रह्मा, विष्णु, शिव, ३ अग्नि, इन्द्र, ५ कार्तिकेय, ६ सूर्य ७, आदि देवताओं की उपासना विशेष रूप से प्रचलित थी । जटासिंह नन्दि ने ब्राह्मण व्यवस्था से सम्बद्ध देवताओं के देवत्व की आलोचना की है। तथा इनकी उपासना को अनुचित ठहराया है । तत्कालीन समाज में गोपूजा का विशेष प्रचलन रहा था । गाय के दूध, घी, आदि को भी पवित्र मानकर देवताओं और पितरों को चढ़ाया जाता था । १° ब्राह्मणों के लिए गोदान करने से देवता आदि प्रसन्न होते हैं तथा दान कर्त्ता को अभीष्ट वस्तुएं प्राप्त होती हैं, आदि - धार्मिक मान्यताएं तत्कालीन समाज में विशेष रूप से प्रचलित थीं । ११ किन्तु जटासिंह गाय को धार्मिक प्रतीक के रूप में नहीं मानते। उन्होंने खेद प्रकट किया कि सवारी करने, भार लादने, बल प्रयोग द्वारा दुही जाने, दमन करने आदि अभद्र व्यवहारों द्वारा गाय को कितनी भयङ्कर यातनाएं सहनी पड़तीं थीं। वे कहते हैं कि धार्मिक दृष्टि से पवित्र माने जाने वाली गाय के साथ किए जाने वाले इन दुर्व्यवहारों को देखते हुए भी इसके देवत्व की भला कहाँ तक रक्षा की जा सकती है ?१२ जैन धर्म की समन्वयमूलक समाजशास्त्रीय प्रवृत्तियां जैन संस्कृत महाकाव्यों के समय से प्रारम्भ होने वाले युग में जैन धार्मिक परिस्थितियों को एक नया मोड़ दे दिया गया था । रविषेण के पद्मचरित (७वीं शताब्दी) तथा उसके बाद निर्मित होने वाले प्रादिपुराण आदि ग्रन्थों से यह प्रतीत १. वराङ्ग०, २५.७६, जयन्त ११ वराङ्ग०, २५.७७-७८ २. ३. वही, २५.७४ ४. वही, २५.७५ ५. वही, २५७६ ६. वही, २५.७६ ७. वही, २४.३६ ८. वही०, २५.७४-७ε ६. वही, २५.७४-७६ १०. वही, २५.६० ११. वही. २५.६१ १२. आरोहवाहस्य धनप्रतोदं प्रदोहवाहो दमनक्रियाभिः । प्रपीडिता: क्लेशगरणान्भजन्ते देवर्षिसंघात सुखानि तेषाम् ॥ - वहीं, २५.६२
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy