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________________ श्रावास व्यवस्था, खान-पान तथा वेश-भूषा २३ ४. मण्डिका' हेमचन्द्र ने 'मण्डिका' को खण्ड - मिश्रित कहा है । इसे पतली अथवा छोटे आकार की रोटी माना जा सकता है । ५. खाद्य - हेमचन्द्र ने खाद्य' को भी सुस्वादु भोजन के रूप में निर्दिष्ट किया है । आजकल की भाषा में इसे 'खाजा' कहा जाता है । 3 ६. प्रपूपिका ४ – शिशुओं का यह प्रिय भोजन रहा था । श्राधुनिक 'मालपूए' से इसे अभिन्न माना जाता है । ६ श्रपूप को 'मुद्ग' (मूंग) से तैयार किया जाता था । ७ 5 ७. ममंराल – इसे 'पर्पट' अर्थात् गुजराती पापड़ कहा गया है । मोनियर विलियमस् ने इसे चावलों अथवा मटरों से बने पापड़ के रूप में स्पष्ट किया है । १° हेमचन्द्र द्वारा 'सुकुमार' विशेषरण के प्रयोग से भी यह अनुमान लगाया जा सकता है कि 'मर्मराल' पापड़ जैसा ही कोई पतला एवं हल्का भोज्य पदार्थ रहा होगा । ११ १० ८. वटक १२ – प्राधुनिक काल में इसे 'बड़ा' कहा जाता है । १३ हेमचन्द्र ने इसे चिकने भोज्य पदार्थ के रूप में स्पष्ट किया है । १४ ६. तीमन १५ – त्रिषष्टि महाकाव्य के सम्पादक ने इसे संस्कृत 'क्वथिका' से भिन्न मानते हुए आधुनिक 'कढ़ी' के रूप में स्पष्ट किया है । १६ १. २. मण्डिकाः खण्डमण्डिताः । खाद्यानि स्वादु हृद्यानि । वही, ३.१.४३ भक्ष्यविशेषा भाषायां 'खाजा' । वही, पाद टिप्पण, पृ० २५७ त्रिषष्टि०, ३.१.४३ ३. ४. द्वया०, १५.५२ ५. आपूपिकैर्नु मारणव्यम् । – द्वया०, १५ ५२ ६. Narang, Dvayāśraya, p. 193 ७. प्रपूपमयं मौगिकम् । द्वया० १६.५७ त्रिषष्टि०, ३.१.४४ ८. ε. Johnson, Trisasti, (Eng. Tr.), Vol. II, p. 123 १०. Williams, Monier, Sanskrit-English Dictionary, Oxford, 1899, p. 606 ११. सुकुमारा मर्मराला । – त्रिषष्टि०, ३.१.४४ तथा तु०— मर्मरशब्दवन्तः । —वही, पाद टि०, पृ० २५७ १२ . वही, ३.१.४४ १३. १४. १५. १६. 'वडा' इति भाषायाम् । वही, ३.१.४४ पाद टि०, पृ० २५७ वटकाश्चातिपेशलाः । - वही, ३.१.३४ वही, ३.१.४४ Fafeका 'कढी' इति भाषायाम् । - वही, पाद टि०, पृ० २५७
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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