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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
(ख) खानपान
विविध प्रकार के खाद्य पदार्थ
आलोच्य काल में विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ कृषि-उपज के अनुसार ही प्रचलित रहे थे। जैन संस्कृत महाकाव्यों में निर्मित विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों का वर्णन इस प्रकार पाया है :
१. प्रोदन' -भात को कहते थे। द्विसन्धान महाकाव्य में इसे 'अन्धस्' भी कहा गया है ।२ हेमचन्द्र ने मांसमिश्रित भात के लिए 'मांसोदन' तथा कोन्दों के भात के लिए 'कोद्रवोदन' का प्रयोग किया है ।
२. करम्भक-दही के साथ मिलाकर तैयार किए गए 'सक्त' (जो चूर्ण) को 'करम्भक' कहा जाता था ।५ जो चूर्ण को 'सक्तु' (माधुनिक सत्तु) की संज्ञा दी जा सकती है।
३. मण्डक-पाजकल इसे 'मांडा' कहा जाता है। पंजाबी में यह 'मन्डे' ६ तथा गुजराती में 'मान्डे' कहलाता है। हरियाणवी भाषा में भी चपाती अर्थात् रोटी को 'मान्डा' कहा जाता है । इसे विशेष अवसरों पर खाण्ड के साथ भी खाया जाता है। इसके लिए 'खांड-मांडा' शब्द प्रयुक्त होता है । १ हेमचन्द्र के अनुसार 'मण्डक' खाण्ड-मिश्रित भी होता था।१२
१. परि०, ७.६६, त्रिषष्टि०, ३.१.१६, धर्म०, २१.३६ २. द्विस०, १.३ ३. द्वया० १७.४१, तथा परि० ७.६८ ४. द्वया०, ३.१३४ ५. करम्भो दधिसक्तवः । -अमरकोष; द्वितीय काण्ड, १८०२ ६. Narang, Dvayasraya, pp. 190-91 ७. त्रिषष्टि०, ३.१.४३, परि० १२.११४ ८. भक्ष्यविशेषा भाषायां 'मांडा' ।
--त्रिषष्टि०, ३.१.४३, पाद-टिप्पण, पृ० २५७ ६. Narang, Dvayasraya, p. 192 १०. Jani, A.N., A Critical Study of the Naisadhiyacarita, Baroda,
1957, p. 218. ११. मण्डिकाः खण्डमण्डिताः । -त्रिषष्टि०, ३.१.४३ १२. मण्डका: खण्डसम्मिश्रा। -वही, ३.१.४३