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________________ श्रावास व्यवस्था, खान-पान तथा वेश-भूषा ३८ १ जाता था । श्रीमद्भागवतपुराण में पुर, ग्राम, व्रज, प्राकर, खेट, खर्वट, घोष, पत्तन प्रादि संज्ञाएं आईं हैं। इसी प्रकार वात्स्यायन के कामसूत्र में 'नगर' 'पत्तन' 'खबंट' 'महत्' प्रादि नगरभेद सम्बन्धी पारिभाषिक संज्ञाएं प्रचलित थीं। इस प्रकार भारत के उत्तरी क्षेत्र एवं दक्षिणी क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की नगर- विभाजक संज्ञाएं प्रचलित थीं । दक्षिण भारत में 'निगम' आदि प्रावास भेदक संज्ञाओं का अधिक प्रचलन था । बौद्ध ग्रन्थों तथा जैन- प्रागम ग्रन्थों में 'निगम' का प्रयोग बाहुल्य है परन्तु अर्थशास्त्र, महाभारत आदि ग्रन्थों में 'निगम' नामक प्रवास-भेदक इकाई का उल्लेख प्राप्त नहीं होता । लगभग चतुर्थ शताब्दी ईस्वी के जैन ग्रन्थ अङ्गविज्जा ( प्रङ्गविद्या ) में भी किंचित् परिवर्तनों सहित ग्राम-नगर भेद के सन्दर्भ में ही 'निगम' (गिम) का उल्लेख हुआ है ।" दशाश्रुतस्कन्ध में भी 'रट्ठ' (राष्ट्र) एवं 'निगम' (तु० नेयारं निगमस्स) का उल्लेख व्यापारिक ग्रामों की ओर संकेत करता है । आगम ग्रन्थों में आए 'निगम' की व्याख्या करते हुए जैन चूर्णी ग्रन्थों एवं वृत्ति ग्रन्थों से भी बहुत उपयोगी प्रकाश पड़ता है । आचाराङ्गसूत्र ३ (१.८) में श्राए 3 प्रष्टशतग्राम्या मध्ये स्थानीयं चतुश्शतग्राम्या द्रोणमुखं, द्विशतग्राम्या खाटिकं, दशग्रामीसंग्रहेण संग्रहणं स्थापयेत् । —अर्थशास्त्र, २.१ २. पुरग्रामव्रजोद्यानक्षेत्रारामाश्रमकरात् । खेटखवंटघोषांश्च ददतुः पत्तनानि च ।। - श्रीमद्भागवतपुराण०, ७.२.१४ ३. नगरे पत्तने खवंटे महति वा सज्जनाश्रये स्थानम् । —कामसूत्र, १.४.२ ४. तत्थ णीहारेसु चलेसु गाम - गगर- रिणगम जाणपय-पट्टण-रिण वेश-सण्णाखधाविपव्यय देस - संजारराजा रणागते । वार - - श्रङ्गविज्जा, सम्पा०, मुनि पुण्यविजय, वाराणसी, १६५७, अ० १२, पृ० १३६ ५. जे नायगं च रट्ठस्य नेयारं निगमस्य वा । सेट्ठि बहुखं हता महामोहं पक्कुवइ ॥' —दशास्र तस्कन्धसूत्र, अनुवादक, प्रात्माराम, लाहोर, १६३६, ६.१६, पृ० ३४० ६. प्रणुपविसित्ता गामं वा, गगरं वा, खेडं वा, कब्बडं वा, मडंबं वा, पट्टणं वा, द्रोणमुहं वा, आगरं वा, प्रसभं वा, गिगमं वा, रायहारिण वा । —प्रचाराङ्गसूत्र, सम्पा०, मुनिनथमल प्रकाशक जैन श्वेताम्बर तेरापन्थी महासभा; कलकत्ता, १९६७, १.८.१०६
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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