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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समान
निवास करती थीं।' प्रत्येक जाति-विशेष के नामानुसार ही 'निगम' नामक ग्राम अथवा पुर के साथ उनकी जाति का नाम भी जोड़ा जाता था, उदाहरणार्थ'सक्यानं निगमो' (शाक्य जाति का निगम) कुरूनं निगमो' (कुरु जाति का निगम)२
आदि । मज्झिमनिकाय के 'एक समयं भग का अगुत्तरापेसु विहरति प्रापणं नाम अगुत्तरापानं निगमो' पर टिप्परिण करते हुए राहुल सांकृत्यायन का मत है कि 'अगुत्तराप' का अर्थ है जनपद, तथा 'आपण' निगम की संज्ञा है।४ संभवतः बौद्धसाहित्य में प्राप्त उल्लेखों के अनुसार प्राचीन भारत में 'निगमों' की बहुत संख्या थी, तथा किसी जाति-विशेष के आधार पर अथवा अन्य किसी विशेषता के आधार पर 'निगम' के 'शक्य', 'कुरु', 'मेदलुम्प', आदि जातियों से सम्बद्ध हो गए थे। 'अगुतराप' नामक जनपद में स्थित 'आपण' नामक 'निगम' में लगभग बीस हजार दुकानें थी । फलतः यह 'निगम' आपणप्रधान होने के कारण 'पापणं नाम-निगमो' कहलाया । कणवेरजातक के 'गामनिगमराजधानियो' तथा आर्यशूर के यज्ञजातक के 'अथ ते तस्य राज्ञः सचिवाः परमिति प्रतिगृह्य तद्वचनं सर्वेषु ग्रामनगरनिगमेषु मार्गविश्राम प्रदेशेषु च दानशाला कारयित्वा' आदि उद्धरणों से ग्राम तथा नगर के समकक्ष 'निगम' की भी संस्थिति जानी जा सकती है।
___मज्झिमनिकाय में 'निगम' के स्वरूप के विषय में एक महत्त्वपूर्ण उल्लेख प्राप्त होता है। राजा प्रसेनजित के पूछने पर कारायण ने राजा को 'निगम' का मार्ग बताया। इस उल्लेख के अनुसार नगर से 'निगम' तीन योजन दूर पर था।
१. संयुत्त निकाय, कल्याणमित्तसुत्त, ३.१८४७ २. वही, ३.१८.४७ ३. मज्झिमनिकाय, पोतलियसुत्त, २.१.४ ४. मज्झिमनिकाय, भाग १, अनुवादक-राहुल सांकृत्यायन, बनारस, १६३३,
पृ० २१४, पादटिप्पण १ ५. शाक्यानां देवडहे निगमे ।-महावस्तु पृ० ४६५
कम्मासधम्म नाम कुरुनं निगमो ।-दीघ०, महानिदानसुत्त, २.१.१
मेदलुम्पं नाम सक्यानं निगमो।-मज्झि०, धम्म० ३६.१०२ ६. मज्झिमनिकाय, अनुवादक-राहुल सांकृत्यायन, पृ० २१४, पादटिप्पण १ 6. Kaņavera-Jātakā, ed., Fausball, Vol.-III, p. 61 ८. The Jatakamala of Aryasura, ed. Dviwedi R. C. and Bhatt,
M. R. Delhi, 1966, p. 41