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________________ २५६ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज एक स्वतन्त्र संस्थिति के रूप में विकसित हुई। नगर विकास की प्रवृत्तियां 'निगम' में सन्निविष्ट होती जा रही थीं। जैन संस्कृत महाकाव्यों के 'निगम' सम्बन्धी उपर्युक्त वर्णनों के आधार पर निम्नलिखित उल्लेखनीय विशेषताओं को रेखाङ्कित किया जा सकता है १. 'निगम' 'ग्राम' से भिन्न थे तथा एक स्वतन्त्र निवासार्थक इकाई के रूप में व्यवहृत होते थे। २. सामान्य रूप से निगमों का जीवन ग्रामीण जीवन से बहुत कुछ मिलता जुलता था। निगमों में गायों के रम्भाने, मोरों के ध्वनि करने, मुर्गों को उछल-कूद मचाने आदि का वातावरण ग्रामतुल्य ही रहा था। ३. 'निगम' व्यापार तथा कृषि-उत्पादन के केन्द्र थे। इनमें पोन्डा (ईख की एक विशेष जाति) ईख, सुपारी, पान आदि की भी फसल होती थी। गन्ने को यन्त्रों द्वारा पेर कर गुड़ आदि बनाने तथा उसे बाजार में ले जाने के लिए गाड़ियों के आवागमन के कारण इनमें विशेष चहल-पहल रहती थी। ४. निगमों के सीमान्त प्रदेशो में स्थित खलिहानों में अनाज के बहुत बड़े ढेर लगे रहते थे । बैल अनाजों के ढ़ेरों में घूमकर चुटयाने का कार्य करते थे। चुटे हुए अनाज को बहुत बड़े-बड़े घड़ों में रख दिया जाता था। अनाज का संग्रहण एवं वितरण होने के कारण इन्हें 'भक्तग्राम' की संज्ञा भी दी गई थी। ५. निगमों का स्वरूप नगरों से भी मिलता-जुलता था। इनमें बड़े-बड़े महल (सौध) बने होते थे तथा समीपवर्ती स्थानों में फल-फूलों के समद्ध उद्यान, वन आदि भी विद्यमान होते थे। ६. निगमों में रहने वाले लोगों का रहन-सहन ऊंचे स्तर का था तथा धन-धान्य सम्पन्न लोग इनमें निवास करते थे। ७. कृषि प्रधान ग्राम होने के कारण इनमें गोप आदि अहीर जातियों के निवास की संभावना की जा सकती है ।२ ८. अावासीय मुक प्रचेतनामों के सन्दर्भ में 'ग्राम' और 'नगर' जीवन के अतिरिक्त 'निगम' एक तीसरे प्रकार की आवासीय संचेतना को मुखरित करती है जो स्वरूप से 'ग्राम' सदृश थी परन्तु स्तर से 'नगर' चेतना की ओर अभिमुख हो रही थी। ४. राजधानी राजधानी मूलतः नगर के स्वरूप की होती है अन्तर केवल यह रहता है कि अनेक नगरों में से किसी एक को 'राजधानी' चुना जाता है। मयमत के १०वें
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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