SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 288
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५४ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज वीरनन्दिकृत चन्द्रप्रभचरित महाकाव्य' (१०वीं शती ई०) तथा असगकृत वर्धमानचरित महाकाव्य (१०वीं शती ई०) के वर्णनानुसार 'निगम' नामक ग्रामों में गायों के रम्भाने, मोरों के ध्वनि करने, मुर्गों की उछल-कूद करने आदि गतिविधियां प्रधानतया वरिणत हैं। इन 'निगम' ग्रामों के खलिहानों में धान्य आदि के बड़े-बड़े ढेर लगे रहते थे तथा इनमें इक्षुयन्त्रों का कलरव होता रहता था। ऊंचे विशाल भवन इनकी शोभा थे । धर्मशर्माभ्युदय महाकाव्य में 'निगम' के स्थान पर 'ग्राम' शब्द का प्रयोग हुअा है तथा जिसमें वणित जनजीवन उपर्युक्त 'निगम वर्णन' से १. (क) क्वचिद् गोधनहुङ्काररिक्षुयन्त्ररवैः क्वचित् । क्वचिच्छिखण्डिनां नादैनिंगमा यस्य सुन्दराः ॥ -चन्द्र०, २.१२३ (ख) वितताखिलक्षितितला: पृथवः शिखरावलीवलयलीढघनाः । समतां यदीय निगमान्तगता धरणीधरैर्दधति धान्यचयाः ॥ -वही, ५.४ (ग) शिखावलीलीढघनाघनाध्वभिर्बहिः स्थितेतनधान्यराशिभिः । विभान्ति यस्मिन्निगमाः कुतुहलादिवोपयातः कुलमेदिनी धरैः । -वही, १.१६ (घ) शशिकराकुरनिर्मलगून्बहिःकृत खलान्निजसीमपरिष्कृतान् । बुधनिभान्निगमान्स विलोकयन्नजनि हृष्टमना वसुधाधिपः ।। -वही, १३.४६ २. (क) निगमर्वहदिक्षुयन्त्रगन्त्रीचयचीत्कारविभिन्नकर्णरन्ध्रः । परिपुञ्जितसस्यकूटकोटीनिकटालुञ्चिवृविभूषितो यः ॥ -वर्ष०, ४.४ (ख) अनपेतपुष्पफलचारुकुजनिचितैः सुधाधवलसौधचयः । निगमैः समुज्जवलनिवासिजनै रघरीचकार कुरूनपि यः ॥ -वही, ५.३६ (ग) पुण्ड क्षवाटनिचितोपशल्याः कुल्याजलैः पूरितशालिवप्राः । ताम्बूलवल्लीपरिणद्धपूगद्रुमान्वितोद्यानवनैश्च रम्याः ॥ अध्यासिता गोधनभूतिमद्भिः कुटुम्बिभिः कुम्भसहस्रधान्यः । ग्रामा समग्रा निगमाश्च यत्र स्वनाथचिन्तामणयो विभान्ति ॥ -वही, १.१०.११
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy