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________________ प्रावास-व्यवस्था, खान-पान तथा वेश-भूषा २४३ १. ग्राम २. नगर ३. निगम ४. राजधानी ५. पाकर ६. खेट द्रोणमुख ८. मडम्ब ६. पत्तन १०. कर्वट ११. सम्बाध तथा १२. घोष' तीन प्रमुख आवासीय संचेतनाएं-ग्राम, नगर, निगम प्रावास व्यवस्था के विविध पायाम युगीन आर्थिक परिस्थितियों के ही परिणाम माने जा सकते हैं जबकि भौगोलिक विविधता से उनकी वास्तुपरक संरचना प्रभावित रहती है। लोकजीवन के दो मुख्य प्रायाम ग्राम-जीवन तथा नगर-जीवन हैं । फलतः आवास व्यवस्था भी मुख्यतया इन्हीं दो विभागों में विभक्त रहती है। भारतीय लोक जीवन का यह एक ऐतिहासिक सत्य रहा है कि ग्राम अर्थव्यवस्था के मुख्य स्रोत रहने पर भी समृद्धि का उपभोग नगरों द्वारा किया जाता है । प्राकृतिक स्वाभाविकता ग्रामों का वैशिष्ट्य है तो नगरों में कृत्रिम वैभव का संग्रहण करने की होड़ सी लगी रहती है। इन्हीं दो अतिवादी मूल्यों में समन्वय स्थापित करते हुए 'निगम' नामक एक तीसरी संचेतना का मध्यकालीन भारत में विशेष पल्लवन हुआ। ग्राम और नगर की मिश्रित विशेषताओं से संघटित 'निगम चेतना' परम्परागत अर्ध-विकसित निगम ग्रामों का ही स्वतन्त्र विकास भी था और आलोच्य युग की सामन्तवादो अर्थव्यवस्था से परिणमित एक तीसरी आवासीय संस्थिति का कृत्रिम उपस्थापन भी। यही कारण है कि कहीं 'निगम' ग्राम के अनुकूल थे तो कहीं नगरों के साथ उनकी समानता की जा सकती है। व्यापारिक ग्राम के रूप में तथा अहीर आदि लोगों के निवास स्थान के रूप में भी इनकी बहुआयामी प्रवृत्ति के दर्शन होते हैं। विविध शताब्दियों एवं विविध प्रान्तों से सम्बद्ध जैन संस्कृत महाकाव्यों ने ग्राम, नगर एवं निगम संस्थितियों के संरचनापरक एवं संचेतनापरक स्वरूप को इस प्रकार उद्घाटित किया है १. ग्रामाकरांश्चापि मडम्बखेटान्पुराणि राष्ट्राणि बहून्यतीत्य। -वराङ्ग, १२.४४ पुराणि राष्ट्राणि मटम्बखेटान् द्रोणीमुखान्खर्वडपत्तनानि । -वही, ३१.५५ तथा वही, ३.४, ११.६७, १८.७५, २१.४४, ४७-४८, २६.८६, ३१.५५; खेटकर्वटमटम्वचयेन लोके । -प्रद्युम्न०, ५.११: ग्रामासमग्रानिगमाश्च ।-वर्ध०, १०.११; पद्मा०, १६.१६२-२००; वराङ्ग, १३.४३; तथा तु०-म्लेच्छा मडम्बनगरपामादीनामधीश्वराः । -त्रिषष्टि०, २.४.१७०
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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