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________________ २२९ अर्थव्यवस्था एवं उद्योग-व्यवसाय इनसे बने अनेक प्रकार के प्राभूषणों, आयुधों तथा अन्य उपकरणों के विक्रया उपलब्ध रहने की सम्भावना की जा सकती है । महत्वपूर्ण वस्त्रों के अन्तर्गत पटी, पटक्षोम, दुकूल, कम्बल, रेशमी वस्त्र, सूक्ष्म वस्त्र, चीनी वस्त्र, कमरबन्द, अंशुक, रत्नकम्बल, मणिकम्बल, तकिया, शय्या, आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।' पमानन्द महाकाव्य में एक स्थान पर स्पष्ट रूप से 'मणिकम्बल' तथा 'गोशीर्षचन्दन' का एक-एक लाख दीनारों में विक्रय किए जाने का स्पष्ट रूप से वर्णन पाया है। मुद्रा तथा क्रय शक्ति प्राचीन काल से ही भारतीय व्यापार में रुपयों मादि के व्यवहार से वस्तुओं का क्रय-विक्रय होता था। जैन संस्कृत महाकाव्यों में व्यापारिक सन्दर्भो में विनिमय सम्बन्धी मुद्राओं का अधिक उल्लेख नहीं आ पाया है। पद्मानन्द महाकाव्य में एक स्थान पर एक लाख दीनारों का प्रयोग व्यापारिक लेन-देन के सम्बन्ध में ही हुया है। इसी प्रकार हम्मीर महाकाव्य में भी अलाउद्दीन द्वारा हम्मीर से एक लाख स्वर्ण मुद्राएं (स्वर्णलक्षम्) मांगी गई थीं। इन दो उल्लेखों से यह ज्ञात होता है कि मध्यकालीन भारतवर्ष में 'दीनार' तथा 'स्वर्ग' अथवा 'सुवर्ण' महत्त्पूर्ण मुद्राएं रही होगी । ऐतिहासिक दृष्टि से 'दीनार' तथा 'सुवर्ण' का गुप्त लेखों में भी प्रयोग हुआ है। 'दीनार' को 'केवड़िक' भी कहा जाता था ।' निशीथभाष्य के अनुसार मयूरांक नामक राजा ने अपने नाम से चिहित 'दीनारों' को भूमि में गाड़ रखा था। 'दीनार' नामक सिक्कों पर 'मोर' चिह्नित रहता था तथा सर्वप्रथम इसका प्रयोग 'कुमारगुप्त' ने किया । तदनन्तर स्कन्दगुप्त तथा भानुगुप्त द्वारा चलाए गए'दीनार' सिक्कों में भी मोर का चिह्न बना रहता था ।८ जगदीश चन्द्र जैन के १. द्विस०, १.३३, चन्द्र०, ७.२३, तथा वधं०, १४.३२ २. पद्मा०, ६.५६ ३. वृद्धो वरिणग् वस्तुयुगस्य मूल्यमेकैकदीनारकलक्षमूचे । -पद्मा० ६.५६ ४. लत् स्वर्णलक्षं चतुरो गजेन्द्रान् । -हम्मीर०, ११.६० ५. ए० एस० अल्तेकर, गुप्तकालीन मुद्राएं, पटना, १९५४, पृ० २०९ ६. जगदीश चन्द्र जैन, जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृ. १८६, पाद टि. २ ७. निशीथभाष्य, १३.४३१५ ८. जगदीश चन्द्र जैन, जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृ० १८६
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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