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अर्थव्यवस्था एवं उद्योग-व्यवसाय
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तथा (६) 'मित्र'-मित्र राजाओं की सेना। इन षविध सेनाओं के स्वरूप से सिद्ध हो जाता है कि 'क्षत्रिय' वंशपरम्परागत पद्धति से सैन्य व्यवसाय को अपनाते थे , किन्तु हम्मीर के अनुसार सेना में विविध जातियों तथा धर्मों आदि के लोग भी जा सकते थे।' राज्य सम्बन्धी कार्य भी क्षत्रियों का जन्मसिद्ध अधिकार माना जाता था। (ग) वैश्य-शूद्र तथा वाणिज्य-कृषि आदि व्यवसाय
मध्यकालीन भरत के प्रारम्भिक चरणों में वैश्य वर्ग का मुख्य व्यवसाय वाणिज्य रहा था। इतिहासकारों की मान्यता है कि ८वीं शताब्दी के बाद बङ्गाल प्रादि प्रदेशों में वैश्य प्रादि व्यापारी लोग वाणिज्य व्यवसाय के प्रति उपेक्षा भाव भी दिखाने लगे थे। 3 ग्यारहवीं शती के अलबेरुनी के अनुसार भी यह विदित होता है कि वैश्यों एवं शद्रों में रहन-सहन, व्यवसाय आदि की दृष्टि से अधिक अन्तर नहीं रह गया था । अलबेरुनी के अनुसार वैश्य तथा शूद्र एक ही ग्राम तया नगर में रहते थे तथा एक ही घर में बैठते-उठते थे।४
इस प्रकार ग्यारहवीं-बारहवीं शताब्दी के ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर वैश्य तथा शूद्र वर्ग में जीविकोपार्जन सम्बन्धी व्यवसायों के चयन में वर्ण-व्यवस्था सम्बन्धी प्राचीन मान्यताएं टूटने भी लगी थीं। हवीं शताब्दी के आदिपुराण में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि वैश्यों को जीविका व्यापार, कृषि एवं पशुपालन थी तथा शूद्र सेवा-शुश्रूषा आदि द्वारा जीवन निर्वाह कर सकते थे।५ आदिपुराण में ही दो प्रकार के शूद्रों का वर्णन भी पाया है प्रथम, वे जो 'कारु' शूद्र कहलाते थे । धोबी इत्यादि जातियाँ इससे सम्मिलित थीं।६ दूसरे, वे जो 'अकारु' शूद्र कहलाते थे। १. हम्मीर०, ११.१ २. Sharma, Ram Sharan, Social Changes in Early Medieval
India'-The First Devaraja Chanana Memorial Lecture,
Delhi, 1969, pp. 14-15 ३. वही, पृ० १२ ४. 'Albiruni notes the absence of any significant difference
between the vaisyas and the Sūdras, who lived together in the same town and village and mixed together in the same house.'
-वही, पृ० ११ ५. तु०-वैश्याश्च कृषिवाणिज्यपशुपाल्योपजीविताः।
-पादि०, १६.१८४ ६. तु-तेषां शुश्रूषणाच्छूद्रास्ते द्विधा कार्वकारवः । ___ कारवो रजकाद्या: स्युस्ततोऽन्ये स्युरकारवः ।।
-आदि०, १६.१८५