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विषय-सूची
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प्राक्कथन संकेत सूची
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प्रथम अध्याय
१-६४
प्रस्तावना साहित्य, समाज और जैन संस्कृत महाकाव्य १. भारतीय साहित्य और समाज : एक सैद्धान्तिक विवेचन
१-३५ समाज शास्त्र-समाज का एक व्यवस्थित विवेचन ३, समाज की ऐतिहासिक अध्ययन पद्धति ५, समाजशास्त्र के विविध तत्त्व ६, सामाजिक-सांस्कृतिक 'परिवर्तन की दिशा , समाज में क्रान्ति की अवधारणा १०, प्राचीन भारतीय सामाजिक विचारक ११, प्राचीन भारतीय धर्मशास्त्र तथा आधुनिक समाजशास्त्र १३, साहित्य एवं समाज में प्रवृत्ति-साम्य २५, साहित्य एवं समाज : उद्भव एवं विकास १७, साहित्यशास्त्र की समाजधर्मी मान्यताएं १६, भारतीय साहित्य के निर्माण की पृष्ठभूमि और सामाजिक चेतना २४, धार्मिक साहित्य एवं वर्ग चेतना २५, रसपरक साहित्य एवं वर्ग चेतना २७, साहित्य सजन एवं समसामयिक मूल्य २८, महाकाव्य एवं सामाजिक चेतना २६, सामाजिक विकास की चार अवस्थाएं तथा महाकाव्य ३०, भारतीय महाकाव्य-लक्षणों के सन्दर्भ में सामाजिक चेतना का स्वरूप ३२,
निष्कर्ष ३४ । २. जैन संस्कृत महाकाव्यों के निर्माण की दिशाएं
३५-६४ जैन संस्कृत साहित्य के लेखन का प्रारम्भ ३५, महाकाव्य परम्परा का विश्वजनीन महत्त्व ३६, महाकाव्य विकास की दो धाराएं ३७, विकसनशील महाकाव्य ३७, अलंकृत महाकाव्य ३८, द्विविध पाश्चात्य महाकाव्यधारा के सन्दर्भ में जैन पुराण तथा महाकाव्य ३८, जैन पुराण : विकसनशील महाकाव्यों के रूप में ३६, जैन संस्कृत अलङ्कृत महाकाव्य ४०, जैन संस्कृत अलङ्कृत महाकाव्यों का शिल्प वैधानिक स्वरूप ४१, जैन संस्कृत महाकाव्यों का वर्गीकरण ४३, जैन संस्कृत चरित महाकाव्य ४४, जैन संस्कृत चरितेतर महाकाव्य ४५, जैन संस्कृत सन्धान महाकाव्य ४६, जैन संस्कृत प्रानन्द महा