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________________ १९० जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज दूसरे प्रकार की 'सामन्तवादी' अर्थव्यवस्था स्वरूप से यद्यपि सामूहिक नहीं समझी जाती है किन्तु सिद्धान्ततः ऐसी ही है। 'सामन्तवादी' अर्थव्यवस्था सिद्धान्तत: यह स्वीकार करती है कि भूमि पर स्वामित्व राज्य अथवा राजा का होता है। राजा 'भू-सम्पत्ति' का अधिकार महत्त्वपूर्ण अथवा धनी व्यक्तियों को सोंपता है तथा पुनः ये भी किसी दूसरी सेवा आदि के बदले में भूमि छोटे लोगों को प्रदान कर देते हैं । इस प्रकार 'सामन्तवादी' अर्थ व्यवस्था 'समतावादी' अर्थ व्यवस्था यद्यपि नहीं है किन्तु सामूहिक अवश्य है।' इस अर्थव्यवस्था में सर्वाधिक दोष तब उत्पन्न होता है जब केन्द्रीय शासन निर्बल रहता है । केन्द्रीय शक्ति के निर्बल होने पर सामन्त अपने क्षेत्र में पूर्णतः स्वतन्त्र बन बैठते हैं तथा समग्र सम्पत्ति का उपभोग भी उन्हीं तक सीमित हो जाता है। यूरोप की मध्यकालीन अर्थव्यवस्था इसी प्रकार की थी। पुरातन समाजों में 'सामन्तवादो' प्रथा का विशेष प्रचलन अमेरिका में देखा जाता है । उदाहरणार्थ घोंगा जनजाति में बादशाह लगान लेकर 'भू-सम्पत्ति' बड़ेबड़े व्यक्तियों में बाँट देता था। तदनन्तर ये इस भूमि को किसानों में बाँटकर लगान वसूल करते थे। भारत की जमींदारी प्रथा भी इसी अर्थव्यवस्था से बहुत कुछ मिलती-जुलती है । 'आर्थिक संस्था' तथा भारतीय आर्थिक विचारक ___ कृषि प्रादि व्यवसायों के अस्तित्व में न पा पाने के कारण पहले पहल मानव समाज 'धन' को व्यक्तिगत भावना से अछूता रहा था। किन्तु जैसे-जैसे उत्पादन के क्षेत्र में उन्नति होती गई मनुष्य व्यक्तिगत 'श्रम' के आधार पर व्यक्तिगत 'धन' के प्रति भी सजग होता गया ।3 प्राचीन भारतीय सभ्यता के प्राचीनतम युग वैदिक-युग में ही कृषि उत्पादन, पशु पालन आदि महत्त्वपूर्ण उद्योगव्यवसाय अस्तित्व में आ गए थे। इसी युग में व्यक्ति 'धन' के स्वत्व की भावना से भी पूर्णत: अनुप्राणित हो चुका था। वैदिक मन्त्रों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि देवताओं से धन, पुत्र, गृह आदि वस्तुओं की याचना की जाती थी। १. किंग्सले डेविस, मानव समाज, पृ० ३६६ २. वही, पृ० ३६६ ३. Roucek, Social Control, p. 348 ४. Mitra, Priti, Life and Society in the Vedic Age, Calcutta, ... 1966, p. 72-73 ५. ऋग्वेद ४.२.५; १०.११७.५ ६. वही, ७.५४.१; ६.७.६
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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