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________________ चतुर्थ अध्याय अर्थव्यवस्था एवं उद्योग-व्यवसाय १. अर्थव्यवस्था आर्थिक संस्था तथा अर्थव्यवस्था अन्य व्यवस्थाओं के समान आर्थिक व्यवस्था भी समाज की एक महत्त्वपूर्ण व्यवस्था है । आर्थिक संस्थाओं की उत्पत्ति के विषय में प्रसिद्ध अर्थशास्त्री 'मागबर्न' तथा 'निमकॉफ' ने कहा है कि 'भोजन' तथा 'सम्पत्ति' विषयक मानवीय क्रियाओं ने आर्थिक संस्थानों को जन्म दिया है। मानव समाज की आद्यावस्था भौतिक दृष्टिकोण से उतनी व्यवस्थित एवं परिपूर्ण नहीं कही जा सकती है जितनी प्राज है । कुछ समाज शास्त्रियों की यह धारणा है कि आदिम युग में भूमि आदि 'सम्पत्ति' पर सामुदायिक अधिकार होता था। शिकारी तथा पशुपालन अर्थव्यवस्था की इस प्रारम्भिकावस्था में लगभग आधे से अधिक मानव जातियों में सामुदायिक स्वामित्व की अर्थव्यवस्था प्रचलित थी। किन्तु दूसरी शिकारी तथा पशुपालक जातियों की भूमि स्वामित्व की इकाइयां छोटे-छोटे खण्डों में विभक्त थीं। इन अर्थव्यवस्थाओं में 'सम्पत्ति' अधिकार का विकेन्द्रीकरण अत्यधिक मात्रा में होता था। उदाहरणार्थ एक व्यक्ति अपने भाई की भूमि पर बिना उसकी अनुमति के शिकार नहीं कर सकता था और यदि शिकार किसी मित्र के क्षेत्र में भी हो जाता था तो उस भूमि का स्वामी शिकार के मांस का एक भाग लेने का हकदार था ।२ इन समाजों में भूमि का हस्तान्तरण कुटुम्ब के प्रौढ़ व्यक्तियों के बिना नहीं किया जा सकता था। इस प्रकार आदिम युगीन आर्थिक व्यवस्थाएं अर्धविकसित व्यवस्थाएं रही थीं। f. The activities of man in relation to food and property constitute the economic institution.' -Ogburn, W.F., & Nimkolf, M.F., A band Book of Sociology, p. 375 २. Lowie, Robert, M., Primitive Society, New York, 1920, p. 214 ३. वही, पृ० २१३
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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