________________
१७६
जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
1
मिलता है । विविध प्रकार के तीक्ष्ण अस्त्र शस्त्रों से युक्त 'वज्र' एक अत्यन्त शक्तिशाली आयुध माना जाता है । 'चालन', 'घूनन', 'छेदन', 'भेदन', - इसकी चतुर्विध गतियां कही गई हैं । तलवारों की मण्डलाकृति से सुशोभित वज्र को ज्वलनशील प्रायुध भी कहा गया है । २
३४. ईली – खड्ग सदृश एक ऐसा आयुध जो दो हाथ ऊँचा और पांच प्रगुलि चौड़ा, प्रागे से विस्तृत एवं करत्राण से रहित होता था । 'सम्पात' 'समुदीर्ण' 'निग्रह' तथा 'प्रग्रह' - ईली के चार प्रयोग सम्भव थे । ४
३५. परशु - मजुमदार महोदय ने इसे २४ इन्च लम्बा अर्ध चन्द्राकार शस्त्र के रूप में स्पष्ट किया है । नीतिप्रकाशिका में इसे सूक्ष्म यष्टि एवं विशालमुख वाले आयुध के रूप में पारिभाषित किया गया है । 'पातन' और 'छेदन' परशु के दो मुख्य कार्य थे । ७
३६. कुन्त – छह से दस हाथ लम्बा इसका आकार होता था । लोहनिर्मित इस शस्त्र विशेष की छह धारें होती थीं। 5a 'उड्डीन', 'अवडीन', 'निडीन', 'भूमि लीन', 'तिर्यग्लीन' तथा 'निखात' इसकी छह गतियाँ कही गई हैं ।' सामान्यतया कुन्त तीक्ष्णाग्रभाग वाले भाले के रूप में जाना जाता है ।
३७. प्रास १० – दो हत्थों वाला, २४ इन्च लम्बा शस्त्र माना जाता है । ११ नीतिप्रकाशिका में इसकी लम्बाई सात हाथ की कही गई है जो लोहशीर्ष, तीक्ष्ण-पाद एवं कौशेय पुंख से समलंकृत रहता था । १२
१. नीति०, ५.२-६
२.
३. नीति० ५.७-८
वराङ्ग०, १७.४५
४. वराङ्ग०, १७.५५, द्विस०, ६.२७, सनत्कुमार०, २१.२, हम्मीर०, ३.२६
५. मजूमदार, भारतीय सेना का इतिहास, पृ० १२४
६. नीति० ५.६-१०
19. वराङ्ग०, १४.१५, प्रद्युम्न०, ६६६, चन्द्र०, १५.४८, कीर्ति०, ५.३२, सनत्कुमार०, २१.६४, हम्मीर०, ११.८७
८. Dikshitar, War in Ancient India, p. 112
६. नीति०, ५.२३
१०. चन्द्र०, १५.१०८
१९. मजूमदार, भारतीय सेना का इतिहास, पृ० १२४ १२. नीति०, ५.२५