________________
सैन्य एवं युद्ध व्यवस्था
१५५
१
'महत्तर' संज्ञा दी गई है । " आदिपुराण में ही भरतचक्रवर्ती की सेना को 'षडङ्ग' कहा गया है जिसमें 'चतुरङ्गिणी' सेना के साथ 'देव सेना' तथा 'विद्याधर सेना' का भी उल्लेख है । 3 भरत की सेना के आगे 'दण्डरत्न' तथा पीछे 'चक्ररत्न' चलता था । 3. डा० नेमिचन्द्र शास्त्री के द्वारा 'दण्डरत्न' को आधुनिक 'टैंक' की संज्ञा दी गई है, जो आगे चलता था, मार्ग साफ करता था तथा ऊबड़-खाबड़ भूमि को समतल बनाता जाता था । ४
ऐतिहासिक दृष्टि से विचार करने पर पी० सी० चक्रवर्ती तथा पी० के० मजूमदार के अनुसार सातवीं ग्राठवीं शती में यद्यपि सेना का स्वरूप चतुरङ्गिणी बना हुआ था किन्तु किन्हीं कारणों से रथ सेना का प्रचलन कम हो गया था । प्रमाण में उन्होंने यह तथ्य प्रस्तुत किया है कि बारण के हर्षचरित में रथ सेना का कहीं भी उल्लेख प्राप्त नहीं होता । इसके अतिरिक्त हर्षवर्धन के समय में भारत भ्रमण के लिए चीनी यात्री युवाङ्ग च्वांग ने भी पुलकेशी द्वितीय की सेना वर्णन के अवसर पर रथ सेना का उल्लेख नहीं किया । ६ किन्तु जैन संस्कृत महाकाव्यों में 'रथ सेना' का उल्लेख अनेक बार हुआ है । ७ मध्यकालीन सैन्य व्यवस्था से सम्बद्ध एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ वैशम्पायन कृत नीतिप्रकाशिका' में भी चतुरङ्गिणी सेना के अन्तर्गत 'रथिकों' की व्यूह रचना का स्पष्ट निर्देश है । इसके अतिरिक्त हर्षकालीन सेना में नौसेना का भी उल्लेख मिलता है, किन्तु जैन संस्कृत महाकाव्यों में नौसेना का उल्लेख प्रायः नहीं के समान है ।
सेना के प्रकार
वीं शती ई० के द्विसन्धान महाकाव्य पर रचित नेमिचन्द्र की टीका के
१. नेमिचन्द्र शास्त्री, आदिपुराण में०, पृ० ३६७ २. हस्त्यश्वरथपादातं देवाश्च सनभश्चराः ।
षडङ्गबलमस्येति पप्रथे व्याप्य रोदसी । - आदि०,
३. वही, २६.७
४. नेमिचन्द्र शास्त्री, प्रादिपुराण में, पृ० ३६८
२६.६
५. Chakravarti, P. C. The Art of War in Ancient India, pp. 25-26, तथा प्रबोधकुमार मजूमदार, भारतीय सेना का इतिहास, प्रथम खण्ड,
लखनऊ, १९६४, पृ० २०८
६. Dixitar, War in Ancint India, pp. 165-66.
७. वराङ्ग०, १७.७४, चन्द्र०, १२.१७, हम्मीर०, ६.११६
८.
योधेषु रथिकान् कुर्यादश्वपृष्ठविशारदान् ।
ε. Dixitar, War in Ancient India, p. 289
नीतिप्रकाशिका ६.५५