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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
तथा युद्ध एवं शान्ति से इसका मुख्य सम्बन्ध होता था। सभी राजवंशों की प्रशासनिक व्यवस्था में 'पुरोहित' पद अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पद थारे सेना-प्रयाण सम्बन्धी शुभाशुभ विचार ज्योतिषीय गणना एवं अन्य धार्मिक कृत्यों के अनुष्ठान के कारण 'पुरोहित' का भी सैनिक प्रशासन में विशेष स्थान था। चालुक्यकालीन केन्द्रीय शासन व्यवस्था ३२ विभागों में विभक्त थी, जिनमें परराष्ट्र विभाग, गज विभाग, ऊंट विभाग तथा प्रायुध विभाग सैन्य व्यवस्था से ही सम्बद्ध थे। परराष्ट्र विभाग का अधिकारी 'सान्धिविग्रहिक' होता था तथा अन्य विभागों के अधिकारी को सामान्यतः ‘महामण्डलेश्वर' अथवा 'दण्डनायक' के नाम से जाना जाता था ।४ राजस्थान के चाहमान एवं प्रतिहार वंश की सैन्यव्यवस्था में 'प्रधान' तथा 'महामात्य' के पद महत्त्वपूर्ण थे जिनमें महामात्य की अपेक्षा 'प्रधान' के ऊपर सैन्य व्यवस्था का अधिक भार होता था ।५ इसके अतिरिक्त 'सेनापति', 'दण्डनायक', 'सान्धिविग्रहिक', 'साधनिक', 'भाण्डागारिक' तथा 'पुरोहित' के पद भी उत्तरदायित्वपूर्ण होते थे । सेना की परिभाषा तथा स्वरूप
___ शुक्रनीतिसार के अनुसार शस्त्रों सथा अस्त्रों से सुसज्जित समुदाय को सेना कहते हैं- 'सेना शस्त्रास्त्रसंयुक्ता मनुष्यादिगणात्मिका'७ मुख्यतया सेना को दो भागों में विभक्त किया गया है-'स्वगमा' अर्थात् पदाति सेना तथा 'अन्यगमा' अर्थात् रथ, अश्व, गज ग्रादि वाहन पर चलने वाली सेना। मुख्य रूप से सेना 'चतुरङ्ग' कहलाती है। 'चतुरङ्गिणी' सेना में पदाति, अश्व, रथ तथा गज सेना पाती हैं। नवीं शताब्दी के पौराणिक महाकाव्य आदिपुराण के अनुसार सेनाएं सात प्रकार की उल्लिखित हैं-१. हस्तिसेना, २. अश्वसेना, ३. रथसेना, ४. पदाति सेना, ५. वृष सेना, ६. गन्धर्व सेना, ७. तथा नर्तकी सेना। इन सात प्रकार की सेनाओं को
१. व्यास, चौलुक्य कुमारपाल, पृ० १४८, तथा
Altekar, Rastrakutas And their., p. 167
Altekar, Rastrakutas And their., p. 169 ३. Munshi, K.M., Glory that was Gurjara Desa, Bombay, 1954,
p. 349 ४. वही, पृ० ३४६ ५. Sharma, Dashratha, Rajasthan Through the Ages, Vol. I, p.
705, ६. वही, पृ० ७०५ ७. शुक्र०, ४.८६४ ८. नेमिचन्द्र शास्त्री, आदिपुराण में०, पृ० ३६७ ९. आदि०, १०.१६८-६९