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________________ १२८ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज 'ग्राम मुखिया' के रूप में स्पष्ट किया गया है । ' ' महत्तर' के एक दूसरे शब्द रूप का भी हेमचन्द्र उल्लेख करते हैं, वह है- 'महयरो' जिसे जङ्गलात के अधिपति (गरपति) के रूप में स्पष्ट किया गया है। इस प्रकार १२वीं शताब्दी ईस्वी में 'महत्तर' के देशी रूप 'महर' अथवा 'महयर' प्रचलित होने लगे थे तथा इनका प्रयोग ग्राम संगठन आदि के अर्थ में ही किया जाता था । अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर इतिहासकारों की धारणा है कि नवीं शताब्दी ई० के मध्य तक 'महत्तर' शब्द का स्थान 'महत्तम' ने ले लिया था । 3 पी० वी० काणे महोदय के द्वारा दी गई सूचना के अनुसार गुप्त कालीन अभिलेखों तथा दानपत्रों में 'महत्तर' का उल्लेख आया है। इनमें से जयभट्ट के एक दान पत्र ( ५वीं शती ई० ) में 'राष्ट्रग्राम- महत्तर' का प्रयोग भी मिलता है । परिणामतः यह कहा जा सकता है कि ग्राम संगठन के अतिरिक्त 'राष्ट्र' के सन्दर्भ में भी 'महत्तर ' नामक प्रशासनिक पद का प्रयोग होने लगा था । पालवंश के दानपत्रों में 'महत्तर' का तिम प्रयोग देवपाल का मोंग्यार दान पत्र है । तदनन्तर नवीं शती ई० के मध्य भाग में 'महत्तम' का प्रयोग होने लगा था । देवपाल के नालन्दा पत्र में इसका सर्वप्रथम उल्लेख मिलता है । ७ तदनन्तर त्रिलोचन पाल के ताम्र पत्र 5 गोविन्द चन्द्र के बसई - दान पत्र, ' मदन पाल तथा गोविन्द चन्द्र के ताम्रपत्र, गोविन्दचन्द्र के बनारस दान पत्र ११ में निरन्तर रूप से 'महत्तर' के स्थान पर 'महत्तम' का उल्लेख आया है । १० १. ' मइहरो ग्रामप्रवरः । मेहरो इत्यन्ये ।' – देशीनाममाला, ६.१२१; तथा तु० पाठभेद - ( १ ) महर ( २ ) मेहर २. 'महयरो गह्वरपतिः ।' – देशी०, ६.१२३ ३. ४. go Kavi Plate of Jayabhata (5th cent. A.D.), Indian Antiquary, Vol. V, p. 114, Maliya Plate of Dharasena II, Gupta Inscription No. 38, plate 164, p. 169; Abhona Plates of Sankaragana (595 A.D.), Epigraphia Indica, Vol. IX, p. 297; Palitana Plate of Simhaditya (Gupta year 255), E.I. Vol. XI, pp. 16, 18. Valabhi Grant of Dharasena II, ( Gupta year 252 ), I.A., Vol. 15, p. 187 I.A., Vol. V, p. 114. Monghyar Grant of Devapāla Nalanda Grant of Devapāla I.A., Vol XVIII, p. 33. ff. 1.4 I.A, XIV, p. 101, ff. 1.11 १०. I.A., XVIII, p. 14, ff. 1.12 ११. I.A., II, plate No. 29, ff. 1.9 ५. ६. ७. ८. Choudhry, Early Medieval Village, p. 218 ε.
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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