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________________ राजनैतिक शासन तन्त्र एवं राज्य व्यवस्था १२७ है तो 'ग्राम महत्तर' को भी 'गोड' का संस्कृत मूल मानना चाहिए। डा० आर० एस० शर्मा महोदय के अनुसार मध्यकालीन दक्षिण भारत में ‘ग्राम प्रवर' तथा 'ग्राममुखिया' के रूप में 'गौन्ड' अथवा 'गोड' का अस्तित्व रहा था । वर्तमान में मैसूर में ये 'गोड' शूद्र वर्ण के हैं।' किन्तु दूसरी ओर 'गोड' ब्राह्मणों के अस्तित्व की भी सूचना मिलती है । अभिप्राय यह है कि मध्यकालीन गौन्ड' जिन्हें कि भूमिदान दिया जाता था तथा जो राजकीय प्रशासनिक अधिकारों का भोग करते थे ग्राम संगठन के सन्दर्भ में 'ग्राम महत्तर' से अभिन्न रहे थे। वर्तमान में 'महत्तर' के अनेक अवशेष प्राप्त होते हैं जिनमें 'महतो', 'मेहता', 'महत्था', 'मल्होत्रा', 'मेहरोत्र' 'मेहतर' आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं ।२ ‘महत्तर' मूल की इन जातियों में ब्राह्मण, वैश्य, कायस्थ, शूद्र आदि सभी वर्गों के लोग सम्मिलित थे तथापि मध्यकालीन सामन्तवादी चरित्र के कारण अर्थ व्यवस्था के ग्रामोन्मुखी हो जाने से जिस दास प्रथा की विभीषिका को जन्म मिला उसके कारण अधिकांश कृषि ग्राम शूद्रों द्वारा बसाए गए परिणामतः ‘ग्राम-मुखिया' भी अधिकांश रूप से शूद्र ही होने लगे थे। इन बदली हुई परिस्थितियों में 'महत्तर' शूद्र के रूप में रूढ़ होने लगे साथ ही इनके पद का अवमूल्यन भी होता गया। त्रिकाण्ड शेष (१४वीं शती ई०) में 'महत्तर' को शूद्र तथा 'ग्रामकूट' के पर्यायवाची शब्द के रूप में परिगणित करने का मुख्य कारण भी यही है कि ये अधिकांशतः शूद्र होते थे। पारिभाषिक दृष्टि से ये 'ग्रामकूट' अर्थात् ग्राम के मुखिया भी थे । कौटिल्य के अर्थशास्त्र में ग्राम के मुखिया के लिए 'ग्रामकूट' का प्रयोग पाया है जो परवर्ती काल में 'महत्तर' के रूप में प्रसिद्ध हो गया। हेमचन्द्र की देशीनाममाला (१२वीं शती ई०) में 'महत्तर' के प्रशासकीय वैशिष्ट्य को विशेष रूप से स्पष्ट किया गया है । हेमचन्द्र ने 'महत्तर' के तत्कालीन प्राकृत एवं जनपदीय भाषाओं में प्रचलित अनेक देशी रूपों का उल्लेख किया है । इनमें से एक रूप था 'मइहर' तथा कुछ लोग इसे 'मेहरो' 'महर' अथवा 'मेहर' भी कहते थे। इस 'मइहर' अथवा 'मेहरो' को 'ग्राम प्रवर' अर्थात् १. 'Similarly 'gaumdas' village elders and headmen who were assigned lands and given fiscal and administrative rights in the medieval Deccan, did not belong to one single cast, and their modern representatives called 'gaudas' in Mysore are regarded as Sudras'. -Sharma, R. S., Social Changes in Early Medieval India, pp. 10-11. २. वही, पृ० १० ३. 'शूद्रःस्यात् पादजो दासो ग्रामकूटो महत्तरः ।' -त्रिकाण्डशेष, २.१०.१ ४. अर्थशास्त्र, ४.४.६
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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