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राजनैतिक शासन तन्त्र एवं राज्य व्यवस्था
तथा 'महासान्धिविग्रहिक'१ पदों का शासनतन्त्र की परराष्ट्रनीति के सन्दर्भ में विशेष महत्त्व होता था । 'सान्धिविग्रहिक' एक प्रकार के राजनैतिक दूत का कार्य करते थे तथा केन्द्रीय सरकार को पर-राष्ट्र की राजनैतिक गतिविधियों से सावधान रखते थे। राजा कुमारपाल के शासन काल के किराडू शिलालेख में खेलादित्य नामक 'सान्धिविग्रहिक' का स्पष्ट उल्लेख पाया है।संभवतः राज्य में विविध मण्डलों अथवा प्रान्तों से सम्बद्ध अनेक 'सान्धिविग्रहिक' रहे होंगे। इन्हीं पदों का उच्चाधिकारी 'महासान्धिविग्रहिक' था । द्वया० महाकाव्य में पाए ‘सान्धिविग्रहिक' की अभय-तिलक गणि द्वारा 'प्रधान पुरुष' के रूप में व्याख्या की गई है। नारङ्ग महोदय ने भी 'सान्धिविग्रहिक' को शान्ति तथा युद्ध का उच्चाधिकारी माना है ।४ जैन संस्कृत महाकाव्यों में 'सान्धिविग्रहिक' के अधिक उल्लेख नहीं हुए हैं तथापि महाकाव्यों में 'दूत' के रूप में निर्दिष्ट व्यक्ति से ही 'सान्धिविग्रहिक' का स्वरूप भी स्पष्ट हो जाता है ।५ 'दूत' अपने राज्य तथा शत्रु-राज्य के मध्य सन्देशों का आदान-प्रदान करता था। जैन महाकाव्यों में उल्लिखित 'दूत' का व्यक्तित्व प्रतिभाशाली राजनीतिज्ञ से कम नहीं । ६ संभवत: 'सान्धिविग्रहिक' ही स्वयं दूत का कार्य करता हो अथवा उसके अधीन 'दूत' का पद रहा होगा।
८. प्रायुधागारिक--इस पद का उल्लेख द्वयाश्रय महाकाव्य तथा द्विसन्धान की टीका में हुअा है । प्रायः इसे शास्त्रास्त्र भण्डार का उच्चाधिकारी कहकर स्पष्ट किया जाता है। हम्मीर महाकाव्य में 'जाहड' नामक व्यक्ति भी इसी प्रकार
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१. Mahasamdhivigrahika, Lit. 'a great officer entrusted with the
arrangement of peace and war' is a technical official title denoting an official superior to the Sāmdhivigrabikas.
Fleet, C.I.I., Vol. III, p. 105, fn. 5 २. व्यास, चौलुक्य कुमारपाल, पृ० १४८ ३. Epigraphia Indica, Vol. XI, p. 44, List No. 287 8. Narang, Dvyāśrayakāvya, p. 174 ५. तु०-दूतमुख्यो ददर्श भूपम् । वरांग०, १६.१२ तथा तु०-चन्द्र०, १२.१-५६,
हम्मीर०, १२.५६-६४ तथा द्रष्टव्य-Fleet, C.I.I., Vol. III, p. 105.
fn.5 ६. चन्द्र०, १२.१-५६ ७. द्वया०, १७.४४ तथा तु० 'भाण्डागारी', द्विस०, २.२२ पर पदकीमुदीटीका 5. Narang, Dvyāśrayakāvya, p. 174.
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