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________________ ११४ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज युद्ध में साथ जाता था।' युद्ध के लिए शस्त्र स्थापना के अवसर पर भी 'पुरोहित' अपने हाथ से शस्त्र स्थापना करता या ।२ 'पुरोहित' प्रायः विद्वान् तथा कवि प्रतिभा सेभी सम्पन्न होते थे । कीतिकौमुदी महाकाव्य के लेखक सोमेश्वर इसी प्रकार के 'पुरोहित' थे जो चालुक्य राजा के सभा-पण्डित भी थे । ५. कोषाध्यक्ष-जैन संस्कृत महाकाव्यों में प्राय: 'कोष' की चर्चा आई है।४ किन्तु 'कोषाध्यक्ष' सदृश किसी पद विशेष का स्पष्ट उल्लेख नहीं हुआ है। हम्मीर महाकाव्य में 'जाहड' के 'कोषाध्यक्ष' होने की सम्भावना की जा सकती है।५। ६. देवज्ञ- राज्याधिकारियों में 'पुरोहित' की भाँति 'दैवज्ञ' का पद भी महत्त्वपूर्ण होता था। जैन संस्कृत महाकाव्यों में दैवज्ञ तथा पुरोहित दो भिन्न-भिन्न पद थे । 'दैवज्ञ' का मुख्य कार्य नक्षत्र लग्न आदि की सूचना देना होता था जबकि 'पुरोहित' अन्य महत्त्वपूर्ण धार्मिक क्रिया कलापों को करता था ।६ 'पुरोहित' का राजकीय गतिविधियों से जितना सम्बन्ध था उतना 'दैवज्ञ' का नहीं । 'दैवज्ञ' के समान ही 'नैमित्तिक' का भी त्रिषष्टि० में उल्लेख हुआ है । 'नैमित्तिक' का मुख्य कार्य था शकुन-अपशकुन, स्वप्न आदि के फलों की राजा को जानकारी देना ।' वराङ्गचरित में 'दैवज्ञ' के लिए ही संभवतः 'सांवत्सरिक' का प्रयोग भी पाया है । ७. सान्धिविग्रहिक- अभिलेखों की सूचनाओं द्वारा 'सान्धिविग्रहिक' १२ १. वरांग०, १७.११०, चन्द्र०, ४.४०, त्रिषष्टि०, २.४.६३, ३५६ २. तु०-सज्जीकृतं महामात्र रोपितास्त्रं पुरोधसा । -चन्द्र०, १५.२१ ३. इति श्री गूर्जरेश्वरपुरोहितश्री-सोमेश्वर-देवविरचिते कीर्तिकौमुदीनाम्नि महाकाव्ये-कीर्ति० की पुष्पिका, पृ० ६ ४. तु०-वयं च हीना बलमित्र-कोशैः । वरांग०, १६.५० तथा हम्मीर०, १३.१३६ कोशेऽन्नं कियदस्तीति नृपः पप्रच्छः जाहडम् । —हम्मीर०, १३.१३६ ६. दैवज्ञनिर्दिष्ट-बलेऽलि लग्ने ।- हम्मीर०, ८.५६, तथा रोपितास्त्रं पुरोधसा । चन्द्र० १५.२१ तथा हम्मीर०, ८.५७ चन्द्र०, १५.२१ तथा हम्मीर०, ८.५७ त्रिषष्टि०, २.२.६१ ६. वही १०. तु०-अमात्यसांवत्सरमन्त्रिणश्च । -वरांग०, ११.६४ Fleet, C.I.I.. List Nos. 35. 120. 139. 171: Bhandarkar's List Nos. 559 (dated in V. S. 1317), 1205 (dated in Kalachuri Year 346), 2038 (dated in Kalchuri year 831), 2043 dated in Harsha Samvat 293), -Puri. B.N.. History of Indian Administration, p. 150, fn.73-74. १२. "Samdhivigrahika', Lit. 'an officer for peace and war, is a technical official or Military title, other synonymous titles were 'Sāṁdhivigrahādhikārānadhikrita and Samdhivigrahin'. -Fleet, C.I.I., Vol. III, p. 167, fn. 6.
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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