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जैन महाकाव्यों में भारतीय समाज
दूसरों की स्त्रियों का सतीत्व नष्ट करने वाले लोगों के लिए नरक लोक में जाने को मान्यता प्रसिद्ध थी ।' अन्य स्त्रियों के साथ रतिक्रीड़ा करने के अपराध करने वालों को नरक तो मिलता ही है साथ ही नरक के नारकी इन्हें गरम लोहे या तांबे से बनाए गए प्राभूषणों, मालाओं तथा वस्त्रों को पहनाते हैं । तदनन्तर नारकी स्त्रियां शृङ्गार सज्जा के साथ इन पुरुषों का आलिङ्गन करती है । 3 इस प्रकार गाढ़ आलिङ्गन मात्र से ही उनका शरीर पिघल जाता है । ४
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धार्मिक विश्वासों के सन्दर्भ में परिगणित अन्य अपराधों में पशु-पक्षियों को पालने वाले धनतृष्णा रखने वाले आदि भी अनैतिक व्यक्ति कहे गए हैं । इनके विषय में घड़े में बन्द कर पकाने, अत्यन्त उष्ण बालू तथा राख में भुनने, तथा मारपीट कर भूसे के समान चूर्ण कर देने जैसी भयङ्कर यातनाओं के प्राप्त होने की धार्मिक मान्ताएं प्रचलित रही थीं। इस प्रकार जैन धर्म में नरक प्राप्ति तथा अन्य भयङ्कर यातनाएं सहने वाले लोग वे ही लोग हो सकते थे जो संसार में अनेक प्रकार के कुकृत्य अपराध करते थे । ७ धार्मिक उपदेशों के द्वारा इन मान्यताओं का प्रचार व प्रसार समाज में मनोवैज्ञानिक रूप से अपराध निवृत्ति में भी विशेष सहायक बना हुआ था ।
हाकार - माकार तथा धिक्कार नीति
पद्मानन्द महाकाव्य में दण्ड व्यवस्था सम्बन्धी जैन पौराणिक मान्यता का भी प्रतिपादन हुआ है । इसके अनुसार हाकार, 5 माकार तथा धिक्कार नीति
१. तु० - हिंसायां निरता नित्यं मृषावचनतत्पराः । परद्रव्यस्य हर्तारः परदाराभिलङ्घिनः ॥
२. तु० - माल्याभरणवस्त्राणि तप्तताम्रमयानि च । धारयन्ति परस्त्रीणां रतिसङ्गमकर्कशाः ॥ वही, ५.६० ३. तु० - भावयन्ति स्त्रियः पुंस प्राश्लिष्यन्ति प्रिया इव ॥
- वराङ्ग०, ५.२६ तथा ५.२६
—वही, ५.६२
४. तु० - ताभिराश्लिष्यमाणाश्च दग्धसर्वाङ्गयष्टयः । - वही, ५.६३ ५. वही, ५.६६-६७
६. वही, ५.६६
७.
८.
विशेष द्रष्टव्य - वराङ्गचरित, सर्ग - ५
तु० - हा त्वया रे कृतं दुष्टमिति । - पद्मा० ७.१६६
ε. तु० - ततो यशस्वी माकारदण्डं युगलिषु व्यधात् । - पद्मा० ७.२१३
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