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________________ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज चुना गया।' इस प्रकार जैन संस्कृत महाकाव्यों के काल में ज्येष्ठ पुत्र को राज्य देने की मान्यता तो थी किन्तु यदि छोटा पुत्र ज्येष्ठ की अपेक्षा अधिक योग्य हो हो तो उसे राज्य देना अनुचित नहीं माना जाता था।२ वराङ्ग में धर्मसेन के द्वारा राजकुमार वराङ्ग को राज्य देने के निश्चय के प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उसके सौतेले भाई ईर्ष्या एवं क्रोधावेश में प्राकर यह सोचने लगे 'क्या हम राजा के पुत्र नहीं क्या हमारी माता का कुल शुद्ध नहीं, हम पराक्रम, बाहुबल, तेज, कान्ति, धैर्य आदि किस गुण में राजकुमार वराङ्ग से कम हैं ? ऐसी कौन सी लौकिक व्यवस्था है जिसे हम नहीं जानते ? क्या राजकुमार वराङ्ग हम लोगों के साथ युद्ध कर युवराज पद को धारण कर सकता है ?'3 इस प्रकार जैन महाकाव्यों की राजनैतिक पृष्ठभूमि में उत्तराधिकार के लिए भाई-भाई में भी युद्ध की सम्भावना बनी हुई थी। उत्तराधिकार के लिए संघर्ष ऐसा प्रतीत होता है कि जैन संस्कृत महाकाव्यों के काल में उत्तराधिकार सम्बन्धी एक प्रान्तरिक संघर्ष चल रहा था। यद्यपि संघर्ष का यह स्वरूप स्पष्ट रूप से सामने नहीं आ पाया तथापि जैन कवियों ने अप्रत्यक्ष रूप से इस संघर्ष की राजनैतिक पृष्ठभूमि को व्यक्त अवश्य किया है। राजा के अपने परिवार में ही संघर्ष की यह स्थिति विद्यमान थी। वराङ्गचरित में राजा धर्मसेन की दूसरी रानी ने अपने पुत्र को राज्याधिकार दिलाने के लिए राजा के अन्य मस्त्रियों के साथ षड्यन्त्र रचकर भावी राजकुमार वराङ्ग को एक दुष्ट प्रश्व पर बिठाकर जंगल में छोड़ देने की योजना बनाई, तथा अपने पुत्र सुषेण को राज्य दिलाया। जैन महाकाव्यों के राजा उत्तराधिकार के विषय में वैसे तो उदार दिखाई देते हैं किन्तु उनके हृदय में एक संशय की भावना भी विद्यमान थी। परिशिष्टपर्व के एक उदाहरण के अनुसार राजा ने अपने दूधमुंहे पुत्र को ही उत्तराधिकार देने में पर्याप्त तत्परता दिखाई । इस प्रकार के छोटे पुत्र के उत्तराधिकार की रक्षा मन्त्रियों पर १. चन्द्र०, ४.४ २. तु०-ज्येष्ठे तनूजे सति राज्यलक्ष्मीया कदाचिन्न किलेतरस्मै । जानन्नपीत्थं नयवर्त्मसंस्थां मह्य कथं दित्सति तामधीशः ॥ -हम्मीर०, ८.५३ ३. वराङ्ग०, ११.८१-७३ ४. वही, २२.७-२५ ५. जयन्त०, ५.४३
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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