SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८४. जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज वसुधेश्वर, नरेश्वर,२ क्षितिपति, महीपति,४ नरपति,५ क्षितिभुज, भूभुज, राजा, सामन्त,६ आदि शब्दों का व्यवहार होता है। राजा के लिए प्रयुक्त होने वाली इन संज्ञानों में से चक्रवर्ती तथा अर्धचक्रवर्ती उपाधियां पौराणिक राजाओं के सम्बन्ध में कही गई हैं। पुराणों के अनुसार चक्रवर्ती भरत क्षेत्र के छः खण्डों का तथा अर्धचक्रवर्ती तीन खण्डों का स्वामी माना गया है ।१० राजा के के महाराज, माण्डलिक, सामन्त आदि भेद साधारणतः राजा के अर्थ में ही प्रयुक्त होते थे किन्तु गुप्तकाल से प्रारम्भ होने वाली शासन-व्यवस्था में इन संज्ञानों में राज्य शक्ति एवं धन समृद्धि के आधार पर पार्थक्य रहा था।११ उदाहरणार्थ'महाराज' सामान्य राजा से कुछ अधिक राज्य का स्वामी होता था। 'माण्डलिक' के अन्तर्गत भी अनेक राजा एवं सामन्त होते थे। 'सामन्त' जिन्हें प्राय: 'राजा' "मपति' आदि से भी सम्बोधित किया जाता था, राजाओं की भेदपरक संज्ञा की न्यूनतम इकाई होते थे । १२ सातवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक के राजस्थान के प्रतिहार शासनप्रणाली'3 तथा चालुक्य शासन व्यवस्था१४ पर दृष्टिपात करें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि 'राजाधिराजपरमेश्वर' 'महाराज', 'महाराजाधिराज परमेश्वर', 'परम भट्टारक', 'महाराजाधिराज', 'परमेश्वर', चक्रवर्ती' आदि उपाधियां प्रचलित थीं। राजा कुमारपाल को 'महाराजाधिराज', 'परमेश्वर', 9 १. वराङ्ग०, १६.२१ २. वराङ्ग०, १६.७, नेमि०, ७.२८ ३. नेमि०, २.१ ४. नेमि०, २.१, पद्मा०, १५ १८७ ५. वसन्त०, २.१५ ६. कीर्ति०, २.११३ ७. कीर्ति०, ३.१ ८. वराङ्ग०, २५.७१ ६. बराङ्ग०, १६.६, द्विस० १८.११४, चन्द्र०, १५.१५, वसन्त०, ११.१ १०. नेमिचन्द्र शास्त्री, संस्कृत काव्य०, पृ० ५२४ ११. वही, पृ०, ५२४ १२. त्रिषष्टि० २.१.२४०, चन्द्र०, ३.७, ५.५२, वराङ्ग०, १६.६ १३. Sharma, Dashratha, (Gen. ed.), Rajasthan Through The Ages, Bikaner, 1966, p. 309 98. Majumdar, R.C., (Gen. ed.), The History and Culture of the Indian People-The Classical Age, Bombay, 1954, p. 353
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy