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________________ राजनैतिक शासन तन्त्र एवं राज्य व्यवस्था ८३ विचारधारा थी कि यदि उद्दण्ड राजा सीधे दण्ड का भय दिखाकर बदले में कोशादि की याचना करता है तब भी राजा को चाहिए कि वह युद्ध विभीषिका से बचे और शत्रु राजा को प्रसन्न करने के लिए प्रत्येक संभव प्रयास करे। वराङ्गचरित का प्रथम मंत्री, चन्द्रप्रभ का पुरुभूति आदि ऐसे मंत्री हैं जिन्हें युद्ध के प्रति उदासीन रहने वाले पक्ष का प्रतिनिधि माना जा सकता है।' हम्मीर महाकाव्य में हम्मीर के कोशागारिक 'जाहड़' ने इसी युद्ध विरोधी बुद्धि के कारला कृत्रिम-अन्नाभाव का भय दिखाकर हम्मीर को युद्ध से विमुख करने तथा अलाउद्दीन से सन्धि कर लेने के लिए विवश करने का असफल प्रयास भी किया। संक्षेप में जैन संस्कृत महाकाव्यों में यद्यपि युद्ध बिरोधी वातावरण के दर्शन भी होते हैं तथापि युद्ध के समर्थकों का बहुमत था तथा युद्ध होते थे। २. राज्य-व्यवस्था राजारों के भेद एवं उपाधियाँ जैन पौराणिक मान्यताओं के अनुसार प्रायः राजाओं के चक्रवर्ती, अर्धचक्रवर्ती, मण्डलेश्वर, अर्धमण्डलेश्वर, महामाण्ड लिक, अधिराज, राजा, नपति भूपाल, प्रादि भेद होते थे ।3 महाकाव्यों में राजा के लिए चक्रवर्ती,४ माण्ड लिक,५ नृपति,६ नप,° उर्वीपति, भूप, भूपाल,१० क्षितीन्द्र," १. वराङ्ग०, १६.५४, तथा चन्द्र० १२.८१ २. त०-कोशेऽन्नं कियदस्तीति नृपः पप्रच्छ जाहडम् ।। . वदामि यदि नास्तीति तदा संधिर्भवेद् ध्रुवम् । -हम्मीर० १३.१३६-३७ ३. नेमिचन्द्र शास्त्री, आदिपुराण में, पृ० ३६४ ४. पद्मा०, १६.१६ ५. चन्द्र०, १.४५, ५.५२, कीर्ति २.६५ ६. वराङ्ग० १६.१६, चन्द्र०, १३.१५, नेमि०, ३.४७ ८. वराङ्ग० १६.३, चन्द्र०, १३.३२ ८. वराङ्ग०, १६.१ ६. वराङ्ग०, १६.१२, चन्द्र०, १६.५४, नेमि०, ११.४६ १०. चन्द्र०, १६.३६ ११. वराङ्ग, १६.४
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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