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________________ राजनैतिक शासन तन्त्र एवं राज्य व्यवस्था को हटाकर एकान्त में हम्मीर के सेनापति के साथ गुप्त वार्ता की।' यह गुप्त वार्ता भेद की नीति पर आधारित थी। अलाउद्दीन ने रतिपाल का विशेष स्वागत किया तथा अपने स्तर के आसन पर स्थान दिया ।२ राजा ने रतिपाल को अपना प्राशय प्रकट करते हुए कहा कि तुम रणथम्भौर के दुर्ग को विजित करने में मेरी सहायता करो तो मैं तुम्हें ही उसका राजा बना दूंगा। इस प्रकार के प्रलोभन से आश्वस्त रतिपाल राजा अलाउद्दीन की कूटनीति का शिकार भी हो गया ।४ तदनन्तर रतिपाल को और अधिक विश्वस्त करने के लिए अलाउद्दीन ने उसे प्रीति भोज दिया तथा अन्तःपुर में ले जाकर अपनी बहिन के हाथों मदिरा-पान भी करवाया। इस प्रकार अलाउद्दीन ने भेदनीति द्वारा रतिपाल को अपने वश में कर लिया। इसी प्रकार सेनापति को भेदनीति द्वारा अपने वश में करने का उल्लेख धर्मशर्माभ्युदय में भी प्राप्त होता है। राजा धर्मसेन से स्वयम्बर में विजय प्राप्त कर लेने की ईर्ष्या से वहाँ पाए हुए राजानों द्वारा धर्म सेन के सेनापति सुषेण को प्रलोभन देने के प्रयास किए गए। दूत द्वारा सुषेण से कहा गया है कि राजा धर्मसेन कायर है तभी वह स्वयं राज कुमारी को लेकर चला गया है और तुम्हें सेना का दायित्व सौंप गया है। तुम्हें चाहिए कि तुम इन राजारों से मिल जागो बदले में तुम्हें अपार धनराशि मिलेगी। इसके विपरीत यदि तुम धर्मनाथ के प्रति कृतज बनकर इन राजाओं के साथ युद्ध करते हो तो तुम्हारी विजय संशयास्पद ही है। जीतने पर तुम्हें धर्मनाथ पुरस्कार के रूप में एक कम्बल से अधिक और १. तु०-अपवार्य सभास्तारान् भ्रातृमात्रद्वितीयकः । -हम्मीर०, १३.७३ २. तु०-प्रायाते रतिपालेऽथ स मायावी शकेश्वरः । उपावीविशदेनं स्वासनेऽभ्युत्थानपूर्वकम् ।। अरजयच्च कूटेन मानैर्दान रनेकधा । —हम्मीर०, १३.७१-७२ ३. तु०-एतद् राज्यं तवैवास्तु जयेच्छः केवलं त्वहम् । -हम्मीर०, १३.७७ ४. हम्मीर०, १३.७८-७६ ५. तु०-अनन्तरन्तःपुरं नीत्वा शकेशस्तमभोजयत् । ___अपीप्यत तद्भगिन्या च प्रतीत्यै मदिरामपि । -हम्मीर० १३.८१ ६. धर्म० १६.१-२० ७. वही, १६.७-८ . ८. वही, १६.१२.२२
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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