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________________ राजनैतिक शासन तन्त्र एवं राज्य व्यवस्था ७३ 'पुलिन्द', 'आटविक '; 'पार्वतीय' 3 आदि भी कहा जाता था । ५. दुर्ग ४ - दुर्ग में लड़ने वाली सेना, जो प्रायः जङ्गली जातियों से निर्मित सेना होती थी । ६. मित्र - सामन्त अर्थात् मित्र राजाओं की सेना । ७ शासन तन्त्र के अन्तर्गत उपर्युक्त षड्विध सैन्य बल का विशेष महत्त्व था । ३. त्रिविध-शक्ति महाभारत में त्रिविध शक्तियों का उल्लेख हुआ है 15 ये त्रिविध शक्तियाँ हैं— 'उत्साह', 'प्रभु' एवं 'मन्त्र' - शक्ति । 'उत्साह' शक्ति को विक्रम बल, 'प्रभु' शक्ति को कोश बल, एवं 'मन्त्र' शक्ति को ज्ञान बल कहा जाता है । कामन्दक ने और अधिक स्पष्ट करते हुए तीन शक्तियों को परिभाषा की है । षाड्गुण्य प्रादि का नीति निर्धारण 'मन्त्र' शक्ति है, कोष एवं सैन्य शक्ति 'प्रभु' शक्ति कहलाती है तथा विजिगीषु राजा की साम्राज्य विस्तार के प्रति प्रकट की गई पराक्रमणपूर्ण क्रियाशीलता 'उत्साह' शक्ति का द्योतक है। तीन शक्तियों से युक्त राजा सदैव विजयी होता है । १° जैन संस्कृत महाकाव्यों में भी राजा के लिए उपर्युक्त तीन शक्तियों की श्रावश्यकता पर बल दिया गया है । चन्द्रप्रभ० के अनुसार चक्रवर्ती अजितसेन १. तु० पुलिन्दकानां वणिजां च घोरं मुहूर्तमेवं समयुद्धमासीत् । —वराङ्ग०, १४.२३ २. चन्द्र०, ४.४७ ३. जयन्त०, ११.४२ ४. तु० दुर्गंधूलिकोट्टपर्वतादि, द्विस० २.११, पर पद कौमुदी, पृ० २७ ५. नेमिचन्द्र शास्त्री, संस्कृत काव्य०, पृ० ५३२ - द्विस०, २.११ पर पद कौमुदी, पृ० १७ ६. तु० - मित्रं सौहृदम्' ७. तु० – 'सामन्तबलं राज्ञां बलम्' – चन्द्र० ४.४७ पर विद्वन्मनो०, पृ० १०६ महाभारत, श्राश्रमवासिकपर्व, ७.६ ८. ६. तु० - ' शक्तिस्त्रिविधा - ज्ञानबलं मन्त्रशक्तिः, कोशदण्डबलं प्रभुशक्तिः, विक्रमबलमुत्साहशक्तिः । __अर्थ०, ६.२ १०. तु० - मंत्रस्य शक्तिं सुनयोपचारं सुकोशदण्डी प्रभुशक्तिमाहुः । उत्साह-शक्तिं बलवद्विचेष्टां त्रिशक्तियुक्तो भवतीह जेता । — कामन्दक०, १५.३२
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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