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________________ राजनैतिक शासन तन्त्र एवं राज्य व्यवस्था समुदायों की सेना), (४) 'मित्र' (मित्रों या सामन्तों की सेना), (५) 'अमित्र' (ऐसी सेना जो कभी शत्रु पक्ष की थी) तथा (६) 'अटवी' या 'पाटविक' (जंगली जातियों की सेना)।' षड्विधबल' की संख्या या स्वरूप में अन्तर भी देखने को मिलता है । राजा शम्भुकृत 'बुधभूषण' नामक राजनीतिशास्त्र के ग्रन्थ में मौल, भूत, श्रेणी, सुहृद्, द्विषद्, पाटविक नामक जो छः भेद माने गए हैं उनमें 'भूत' वेतन भोगी सेना है तो 'श्रेणी' गमन मार्ग के स्थान पर नियोजित सेना कही गई है ।२ सभापर्व में चतुर्विध सेना का उल्लेख है। जिनमें 'श्रेणी एबं 'अमित्र' का उल्लेख नहीं है। युद्धकाण्ड में पांच प्रकार (श्रेणि रहित) की सेनाएं वणित हैं।४ वैश्म्पायनकृत 'नीतिप्रकाशिका' मौल, वैत्र, भृत्य, पाटविक नामक चतुर्विध बल का ही उल्लेख करती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि 'षड्विधबल' की धारणा समय और परिस्थितियों की दृष्टि से पृथक् रही थी। विविध राज्य-व्यवस्थाओं में इसकी स्थिति किंचित् प्रकारान्तरों से प्रचलित रही थी। द्विसन्धान के अनुसार राज्य के 'षड्विधबल' का विशेष महत्त्व है। टीकाकार नेमिचन्द्र ने 'षड्विधबल' की व्याख्या करते हुए इसके अन्तर्गत (१) मौल (२) भृतक (३) श्रेणी (४) प्रारण्य (५) दुर्ग तथा (६) मित्र नामक छ: प्रकार की सेनाओं को स्वीकार किया है ।७ चन्द्रप्रभचरित में उपर्युक्त पारिभाषिक षड्विध बलों में से 'मौल' 'पाटविक' (पारण्य) 'सामन्तबल' (मित्र) के उल्लेख द्विसन्धान के 'षड्विधवल' को शासनतन्त्रीय पारिभाषिक तत्त्व के रूप में स्पष्ट कर देते हैं । चन्द्रप्रभ० के टीकाकार ने भी 'मौल' के अन्तर्गत मन्त्री, १. काणे, धर्मशास्त्र का इतिहास, भाग-२, पृ० ६७७ २. तु०-'मौलं भूतं श्रेणि सुहृद् द्विषदाटविकं बलम्'-बुधभूषण, २.१८६ पर उद्धृत टीका-"भूतं यावद्विभवस्थायि । 'श्रेणि' गमनमार्गे स्थाने निवेशितम्" ३. सभापर्व, ५.६३ ४. युद्धकाण्ड, १७.२४ ५. तु०-'चतुर्विधबला चमूः' नीतिप्रकाशिका, १.५५ पर उद्धृत टीका 'चतुर्विधबला मौल-वैत्र-भृत्याटविकर्बलयुक्ता' ६. द्विस०, २.११ ७. तु०--'तच्च मौलभृतकश्रेण्यदुर्गामित्रभेदम् ।' -द्विस० २.११ पर नेमिचन्द्र कृत पदकौमुदी टीका, पृ० २७ ८. तु०--विधाय मौलं बलमात्ममूले स नीतिमानाट विकं बहिः स्थितम् । ___ मध्ये च सामन्तबलं बलीयश्चचाल चूडामणिभासिताशः ॥ -चन्द्र० ४.४७
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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