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"अलंकार केवल वारणी की सजावट के लिये नहीं, वे भाव की अभिव्यक्ति के विशेष द्वार हैं । भाषा की पुष्टि के लिए राग की पूर्णता के लिये आवश्यक उपादान हैं, वे वाणी के आचार-व्यवहार, रीति-नीति हैं, पृथक् स्थितियों के पृथक् स्वरूप, भिन्न अवस्थानों के भिन्न चित्र हैं । वे वाणी के हास, अश्रु, स्वप्न, पुलक, हाव-भाव हैं । जहाँ भाषा की जाली केवल अलंकारों के चौखटे में फिट करने के लिए बुनी जाती है, वहाँ भावों की उदारता शब्दों की कृपण जड़ता में बँधकर सेनापति के दाता और सूम की तरह 'इकसार' हो जाती है ।"
अलंकारों के भेद
अलंकार तीन प्रकार के होते हैं - १. शब्दालंकार २. अर्थालंकार ३. उभयालंकार ।
१. शब्दालंकार - शब्दालंकार शब्द विशेष के द्वारा अपना चमत्कार प्रस्तुत करते हैं । शब्द विशेष के परिवर्तन से शब्दालंकार का अस्तित्व प्रभावित होता है । शब्दालंकारों में अनुप्रास, यमक, श्लेष, वक्रोक्ति आदि विख्यात हैं ।
२. अर्थालंकार - जो अलंकार काव्य के अर्थ के द्वारा चमत्कार सौन्दर्य उत्पन्न करते हैं, वे अर्थालंकार कहलाते
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