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सुकुमार रचनापरायण सहज शक्ति प्रादुर्भूत हो जाती है क्योंकि शक्ति और शक्तिमान् में अभेद सम्बन्ध पाया जाता है।
कविस्वभाव, प्रतिभा या शक्ति को किसी देश विशेष की सीमा में परिमित नहीं किया जा सकता । अतः देश विशेष के आधार पर रीति/मार्ग का व्यवहार उचित नहीं है।
आचार्य कुन्तक ने रीति/मार्ग के वामनादि मत की आलोचना के बाद तीन मार्गों का उल्लेख किया है१. सुकुमार मार्ग, २. विचित्र मार्ग ३. मध्यम मार्ग ।
सुकुमार मार्ग-कालिदास आदि महाकवियों ने अपनी काव्य-यात्रा सुकुमार-मार्ग से ही प्रारम्भ की थी। पुषित, सरस मार्ग से, जिस प्रकार भ्रमरपंक्तियाँ विचरण करती हैं ठीक उसी प्रकार इस मार्ग के कवियों में सारसंग्रह जैसा गुण प्राप्त होता है । इस मार्ग के कवियों में जो कुछ भी प्रस्तुतिकला, अलंकारादि वैचित्र्य प्राप्त होता है, वह प्रतिभा से प्रकट होता है; सहज होता है, आहार्य नहीं।
सुकुमारमार्ग के विषय में गहनता से जानने के लिए तो 'वक्रोक्तिजीवित' का ही अध्ययन करना होगा क्योंकि
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