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आचार्य वामन के अनुसार रीति की परिभाषा 'विशिष्ट पदरचना रीति' है। दण्डी के द्वारा प्रस्तुत किये गये काव्यगुणों को स्वीकार करते हुए वामन ने उनकी स्पष्ट व्याख्या प्रस्तुत की है तथा उनकी सीमा का विस्तार भी किया है । उन्होंने काव्यगुणों को शब्दगुण तथा अर्थगुण के रूप में विभक्त किया है । फलतः भेदक तत्त्वों की संख्या दस से द्विगुणित (बीस) हो गई है। __शब्दगुण- १. श्लेष-वर्गों की संश्लिष्ट योजना और उसके फलस्वरूप शब्दयोजना में श्लक्षणता-मृदुता, २. प्रसाद-शब्दों की अत्यन्त सघन योजना का परिहार, ३. समता-शब्दयोजना में एकरूपता, ४. माधुर्य-दीर्घ समासों के अभाव के फलस्वरूप प्रत्येक पद की पृथक्पृथक् स्पष्ट प्रतीति, ५. सुकुमारता-कोमल-कान्त पदयोजना, ६. अर्थव्यनि-शब्दप्रयोग की सम्पूर्णता, भाव की पूर्णता तथा स्पष्ट प्राकट्य, ७. उदारत्व-पदयोजना में सजीवता एवं शक्ति, ८. प्रोज-शब्दों की योजना में प्रगाढ़ता, ६. कान्ति-शब्दों की उज्ज्वलता एवं सम्पन्नता, १० समाधि-शब्दों के प्रयोग में आरोह-अवरोह का समुचित न्यास ।
अर्थगुरण-१. श्लेष-अनेक भावों का समुचित सुमेल,
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