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रूप से ग्राह्य अथवा उभयमार्ग साधारण हैं ,शेष पाँच गुण वैदर्भ-मार्ग में अपने मूल रूप में ग्रहण किये जाते हैं; वहाँ गौड़ीय मार्ग में कुछ परिवर्तन के साथ स्वीकार किये जाते हैं ।१
स्वरूप-निरूपण के अनुसार वैदर्भ-मार्ग के छह प्रमुख तत्त्व हैं-१. वर्णयोजना एवं पदयोजना में कोमलता तथा संश्लिष्टता तथा अोज गुण का समन्वय । २. वर्णयोजना में एकरूपता। ३. अर्थ की स्वच्छता, स्पष्टता तथा पूर्णता, ४. वर्णयोजना तथा पदयोजना और भावयोजना में माधुर्य । ५. भावों की उदारता एवं स्वाभाविकता ६. अभिव्यक्ति-पद्धति की अलंकृतता एवं रूपकयोजना ।
गौडीयमार्ग के प्रमुख लक्षण-१. वर्णयोजना एवं पदयोजना में कठोरता तथा समासों के उन्मुक्त प्रयोगों से उत्पन्न अोज का गुण २. अनुप्रास के उदार प्रयोग से उद्भूत माधुर्य । ३. अर्थयोजना में चमत्कार उत्पादित करने के लिये आडम्बरपूर्ण शब्दों का प्रयोग, भले ही
१. वही -पृ. १३८-१४०,
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